Bokaro: सेल के बोकारो जेनेरल अस्पताल (BGH) में एक बुजुर्ग महिला की टूटी हुई स्पाइन (रीढ़) की बेहद सूक्ष्मतम तरीके से की गई सर्जरी चर्चा बटोर रही है। बीजीएच इस तरह की सर्जरी करने वाला राज्य का पहला अस्पताल बन गया है। इस सर्जरी की सूक्ष्मतमता को ऐसे समझा जा सकता है की डॉक्टरों ने पहले अत्याधुनिक उपकरण के मदद से स्पाइन की टूटी हुई हड्डी के बीच खोखला रास्ता तैयार किया, फिर बैलून से उस जगह को फुलाया और उसमें बोन सीमेंट भर कर जोड़ दिया। इस पूरे सर्जरी को डॉक्टरों ने फ्लोरोस्कोपिक इमेजिंग की मदद से किया।
करीब तीन घंटे चली इस सर्जरी को प्रख्यात न्यूरोसर्जन डॉ आनंद कुमार की टीम ने किया है। बैलून काइफोप्लास्टी नामक इस सर्जरी से 65 साल की महिला तीरथी देवी के स्पाइन फ्रेक्चर का सफल इलाज हुआ है। बोकारो स्टील प्लांट के प्रवक्ता, मणिकांत धान के अनुसार बिना अधिक चीर-फाड़ किए अत्याधुनिक तकनीक के जरिये सूक्ष्मतम चीरे से उक्त महिला का इलाज किया गया है। यह एक बारीक़ इनवेसिव सर्जरी है जो पूर्वी भारत में बहुत कम अस्पतालों में की जाती है।
गुरुवार को हुई सर्जरी के बाद महिला बिलकुल स्वस्थ है और अपने से उठकर बैठ जा रही है। चास ब्लॉक के मानगो गांव निवासी महिला तीरथी देवी सितम्बर के आखिरी हफ्ते में बाथरूम में गिर गई थी। इसके बाद से उनका चलना-फिरना, उठना-बैठना दूभर हो रखा था। कमर में असहनीय दर्द होता था। बीजीएच में इलाज के करम में उनके रीढ़ की हड्डी (स्पाइन) में कई स्तरों पर फ्रेक्चर का पता चला। बीजीएच के न्यूरोसर्जरी विभाग के डॉक्टरों ने उन्हें ऑस्टियोपोरोटिक वर्टेब्रल स्पाइनल फ्रैक्चर से ग्रसित पाया।
सर्जरी करने वाले डॉ आनंद ने जांच के दौरान यह पाया की तीरथी देवी को एक पुरानी चोट थी जिसके कारण एक अन्य जगह भी स्पाइन में फ्रैक्चर था। उक्त मरीज की स्थिति का आकलन करते हुए, डॉ आनंद ने बीजीएच के निदेशक, डॉ पंकज शर्मा से परामर्श किया। उनके कहने पर उन्होंने पहली बार बैलून काइफोप्लास्टी करने की चुनौती स्वीकार की। तीरथी देवी के पति धनेश्वर मल्लाह बोकारो स्टील प्लांट (बीएसएल) के सेवानिवृत्त कर्मचारी हैं, उन्होंने अपनी सहमति दी।
बीजीएच के डॉक्टरों की टीम ने पहले महिला मरीज को बेहोश किया। फिर उस रीढ़ के टूटे हुए स्थान पर पहले एक खोखला करने वाले उपकरण का उपयोग करके खंडित कशेरुकाओं (vertebra) में मार्ग बनाया। उसके बाद उस उपकरण के खोखले रास्ते से एक छोटा गुब्बारा टूटी हुई हड्डी के हिस्से में डाला। जब एक बार वह गुब्बारा सही जगह पहुंच गया, तो उसे धीरे-धीरे फुलाया ताकि टूटी हुई हड्डी को उसकी सामान्य स्थिति में धीरे से उठाया जा सके। जब हड्डी सही स्थिति में हो गई तो गुब्बारे को हटाया गया। और उस रिक्त स्थान को आर्थोपेडिक सीमेंट से भर दिया गया। एक बार सेट हो जाने के बाद, सीमेंट कशेरुकाओं के अंदर एक कास्ट बना जिसने हड्डी को स्थिर रखेगा।
मरीज के बेटे अश्विनी कुमार ने कहा, “पहले मेरी माँ गंभीर पीठ दर्द से परेशान थी। चलने और खड़े होने में बेहद दर्द होता था। उसे हमेशा एक सहारे की जरूरत होती थी। वह लगातार दर्द की दवा ले रही थी। लेकिन सर्जरी के बाद से वह ठीक महसूस कर रही है।” डॉ आनंद के टीम में डॉ मोहित कुमार, डॉ प्रदीप कुमार, डॉ गौतम साहा (एनेस्थीसिया विभाग के एचओडी), डॉ अजय, डॉ राजमोहन, वीणा, शाहनवाज़ और मुकुल थे। डॉक्टरों ने बताया कि इस सर्जरी के बहुत अच्छे परिणाम हैं और भारत में गति पकड़ रही है। लेकिन फिर भी यह पूर्वी भारत में शायद ही कही किया जाता है।