झारखंड अपने जीवंत जनजातीय कलाओं के लिए प्रसिद्ध है। झारखंड के हजारीबाग जिले की यह खास सोहराई पेंटिंग, इस क्षेत्र की स्थानीय कलात्मक परंपराओं की एक सुंदर अभिव्यक्ति है। सोहराई पेंटिंग को ओडीओपी (एक जिला एक उत्पाद) आइटम के रूप में मान्यता हासिल है।
सोहराई पेंटिंग प्राकृतिक रंगों और सरल उपकरणों के उपयोग के लिए जानी जाती है। इसके कलाकार जटिल डिजाइन बनाने के लिए अक्सर टहनियों व धान की बालियों से बने ब्रश या उंगलियों का उपयोग करते हैं। वे अपनी सरल, लेकिन भावपूर्ण, कहानी कहने की कला के लिए जाने जाते हैं। पशु-पक्षियों एवं प्रकृति का चित्रण जनजातीय संस्कृति में कृषि जीवन शैली और वन्य जीवों के प्रति श्रद्धा का प्रतिबिंब है।
सोहराई पेंटिंग पारंपरिक रूप से महिलाओं द्वारा बनाई जाती हैं, खासकर त्योहारों और फसल के मौसम के दौरान। यह कला फसल के प्रति कृतज्ञता का एक रूप है और माना जाता है कि यह आने वाले वर्ष के लिए सौभाग्य लाती है।
सोहराई पेंटिंग अक्सर प्रकृति से प्रेरणा लेती हैं, जो यहां पत्तियों, पौधों और जानवरों के उपयोग से स्पष्ट है। मोर को आसपास के तत्वों के साथ मेल-जोल करते हुए चित्रित किया गया है और इसकी मुद्रा एक सुंदर नृत्य को दर्शाती है, जो इस चित्र को सजीव बनाती है। यह प्रचुरता, सुंदरता और समृद्धि का प्रतीक है, जो फसल संबंधी विषयों के अनुरूप है। लताओं एवं पत्तियों जैसे आसपास के प्राकृतिक तत्व उर्वरता एवं धरती के बीच के संबंध को और मजबूत करते हैं।
सोहराई पेंटिंग स्वदेशी समुदायों की कलात्मक अभिव्यक्ति एवं सांस्कृतिक विरासत को प्रदर्शित करते हुए उनके और प्रकृति के बीच घनिष्ठ संबंध को दर्शाती हैं। सरल रेखाओं, बोल्ड पैटर्न और प्राकृतिक रंगों के माध्यम से, यह पेंटिंग प्राकृतिक दुनिया के प्रति सद्भाव और सम्मान की भावना व्यक्त करती है।