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एक मिसाल: पिता की याद में विकसित कर दिया पूरा का पूरा जंगल, लह लहा रहे सैकड़ो पेड़


Bokaro: माता-पिता की स्मृति में लोग अक्सर पेड़-पौधे लगाते हैं. लेकिन उनकी स्मृति में किसी ने पूरा जंगल ही विकसित कर दिया हो, ऐसा बहुत कम ही देखा-सुना गया है. कसमार प्रखंड के बरईकला निवासी नागेश्वर महतो ने इस अनोखे कार्य को मूर्त रूप देकर एक नई मिसाल पेश की है. इन्होंने अपने पिता स्वर्गीय जयनंदन महतो की स्मृति में करीब 2 एकड़ भूमि पर एक वन लगाकर पिता के प्रति श्रद्धा के साथ-साथ वन-पर्यावरण के प्रति भी अपने प्रेम को दर्शाया है.

इस वन की चर्चा अब दूर-दूर तक होने लगी है और यह लोगों को वन-पर्यावरण के संरक्षण-संवर्द्धन के प्रति प्रेरित भी करने लगा है. प्रायः दिन इसे देखने के लिए लोग यहां आते हैं. महतो ने बताया कि करीब दो दशक पहले अपने पिता के निधन के बाद उनकी स्मृति में कुछ अलग करने की ठानी थी और उसी के परिणामतः’जयनंदन स्मृति वन’ की बुनियाद रखी. इसमें आज सैकडों फलदार व इमारती पेड़-पौधे लहलहा रहे हैं और ये शुद्ध हवा, शीतल छाया, फल व औषधीय सामग्रियां दे रहे हैं.

यह वन मौजूदा कृत्रिम परिवेश में पर्यावरण सुरक्षा का आदर्श पाठ प्रस्तुत कर रहा है. श्री महतो ने बताया कि बरईकलां पंचायत के तेतरटांड टोला में 2007 से इस वन को विकसित करने की शुरुआत की थी. इसमें प्रत्येक स्मृति दिवस, राष्ट्रीय त्यौहार व पर्व के अवसर पर पौध -रोपण किया जाता है. इस कार्य को मूर्त रूप देने में परिवार के सभी सदस्यों ने गहरी अभिरुचि दिखाई है और सभी ने अपना अहम योगदान दिया है.

वन विकसित करने में सरलता और कठिनाई

महतो ने बताया कि वन के लिए विशेष खर्च, योजना और तकनीक की आवश्यकता नहीं पड़ी. घेरान के लिए सिंदवार, पुटुस व बोका भेंडरा किनारे -किनारे लगा कर वन को सुरक्षा प्रदान किया गया. सिर्फ मन में ठान लिया और लगातार वन संवर्द्धन के लिये प्रयासरत रहा. जिससे देखते ही देखते वन विकसित हो गया. अब वन का सुनहरा दृश्य लोगों को अपनी ओर लुभाने लगा है और लोग देखने, घूमने व जानने के लिए अक्सर पहुंचा करते हैं. अब यहां योगाभ्यास, कसरत, मॉर्निंग वाक, किसान प्रशिक्षण व अन्य कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं.

लहलहा रहे हैं ये पेड

इस वन में आम, जामुन, कटहल,महुआ, काजू, शरीफा, महोगनी, सागवान, शीशम, अकासिया, नीम, गढ़नीम आदि पेड लगे हैं. अनेक पेड़ों ने अब फल देना भी आरंभ कर दिया है. कई औषधीय जड़ी-बूटियां भी विकसित हो रही हैं. सुबह -शाम के अतिरिक्त दिन भर चिड़ियों का चह चहाना व कलरव करना स्वभाव बन गया है. चिड़ियों के लिए यहां घड़े में हमेशा पानी भरा रहता है.

जन्मदिन पर शुरू की आम बागवानी

वर्तमान समय में जन्मदिन मनाने के लिये अत्याधुनिक महंगे तरीकों व गत विधियों का जोरों से नकल करने की परिपाटी चली है. पर पर्यावरण की यथार्थता एवं संस्कार, सभ्यता व समृद्धि के लिए श्री महतो ने अपने जन्मदिन पर 2017 में स्मृति वन के निकट एक अलग प्लॉट पर आम बागवानी भी निजी स्तर पर की है. इसमें आम की कई उत्तम प्रजातियां, अमरुद, बेल, लीची, संतरा, सेब, शहतूत, आंवला के पौधों को जहर मुक्त प्राकृतिक खाद के सहयोग से विकसित किया गया है. बीच-बीच में पपीता, ओल, नेपियर घास, बडी इलायची आदि की खेती की जाती है.

 

महतो ने कहा कि एक बच्चे को विकसित करने में जितनी मेहनत लगती है, लगभग उतनी ही तत्परता एक पौधा को विकसित करने में लग जाती है. उन्हें खुशी है कि एक वन को विकसित कर पर्यावरण की दिशा में एक योगदान देने में सफलता मिली है.


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