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Ukraine से सकुशल बोकारो पहुंचा अंकित, घर पहुँचते ही सबसे पहले माँगा खाना, बोला…


Bokaro: यूक्रेन में फंसे बोकारो के आधा दर्ज़न बच्चो में से 22 वर्षीय अंकित कुमार सकुशल अपने घर मंगलवार रात को पहुंचे। बारी कोआपरेटिव के राजेंद्र नगर के रहनेवाले अंकित कुमार झारखण्ड के उन पांच बच्चो में से एक है जो पहले दिल्ली और फिर रांची फ्लाइट से पहुंचे। उनको देखतें ही घर वालों का ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा। घर पहुंचते ही सबसे पहले अंकित ने खाना माँगा। परिवारवालों को बताया कि उन्होंने पिछले पांच दिन से ब्रेड के अलावा कुछ नहीं खाया है।

यूक्रेन के विनीतसिया शहर के मेडिकल कॉलेज के फर्स्ट ईयर के छात्र, अंकित, के लिए अपने घर पहुंचना किसी जंग जीतने से कम नहीं है। वह अपने परिवार के बीच पहुँच कर बहुत खुश है। उन्होंने बताया कि बोकारो के तेलों के रहने वाले उनके ही कॉलेज के फोर्थ ईयर के पंकज कुमार महतो सहित अन्य भारतीय रोमानिया के शेल्टर होम में फंसे है। वह अपने आने के बारी का इंतज़ार कर रहे है। यह तो उनकी किस्मत अच्छी थी कि वह रोमानिया में घुस पाए।

उन्होंने बताया कि बॉर्डर में घुसते ही वहां शेल्टर होम ले जाने के लिए कई बस खड़ी थी। उनमे से एक मे अधिकतर भारतीय लड़के-लड़किया चढ़ गए। वह बस उन्हें भी रोमानिया के शेल्टर होम ले जा रही थी, पर वह सब एयरपोर्ट जाने कि जिद्द करने लगे। जिस कारण बस ड्राइवर ने उन सभी को एयरपोर्ट में ड्राप कर दिया। उसके बाद जैसे ही भारतीय फ्लाइट आई वह सभी उससे अपने देश पहुँच गए।

अंकित ने बताया कि बॉर्डर पर बहुत भीड़ है। रोमानियन गार्ड्स गेट बंद किये हुए थे। भीड़ को कण्ट्रोल करने के लिए हवाई फायरिंग भी करते थे। माइनस दो डिग्री सेल्सियस वाली ठंड में खुले आसमान के नीचे रात-दिन उनको भी रहना पड़ा। उनकी किस्मत अच्छी थी की उन्हें रोमोनियन बॉर्डर में एंट्री मिल गई। बॉर्डर पार करने के बाद उनके साँस में साँस आई और डर थोड़ा कम हुआ। लगा जैसे अब वह अपने देश पहुँच जायेंगे।

अंकित ने बताया कि उन्होंने बहुत हिम्मत करके अपने तीन दोस्तों के साथ यूक्रेन के विनीतसिया शहर से 350 किलोमीटर की यात्रा बस से की और रोमानिया बॉर्डर पहुंचे। छह घंटे की यात्रा में पुरे रास्ते उनके रोयें डर से खड़े थे। अगर उन्होंने हिम्मत नहीं की होती तो आज वह भी कई भारतीयों की तरह वही फंसे होते। एम्बेसी से भारतीयों को यह एडवाइजरी थी की यात्रा के दौरान वह देश का झंडा रखे। अपने देश का झंडा वहां उनकी सबसे बड़ी हिम्मत थी।


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