Bokaro: केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF) द्वारा शनिवार को श्रमिकों पर लाठीचार्ज किए जाने के बाद, आज रविवार को राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मंत्री केएन त्रिपाठी ने सीआईएसएफ के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई। जवाब में, सीआईएसएफ ने भी प्रदर्शनकारियों के खिलाफ शिकायत दर्ज की है।
सीआईएसएफ, बीएसएल यूनिट के डीआइजी सौगत राय ने पुष्टि की कि सीआईएसएफ ने भी शिकायत दर्ज करायी है। दोनों मामला सिटी थाना में दर्ज़ हुआ है। इधर लाठीचार्ज के बावजूद, श्रमिकों ने बोकारो स्टील प्लांट (BSL) के इस्पात भवन के सामने अपना विरोध प्रदर्शन जारी रखा हुआ है। मांगें पूरी होने तक वहां से हटने से इनकार कर दिया है।
नगर थाने के प्रभारी निरीक्षक मोहम्मद रुस्तम ने बताया कि दोनों पक्षों की ओर से प्राथमिकी दर्ज करायी गयी है और मामले की जांच की जा रही है।
प्रेस कॉन्फ्रेंस कर, के एन त्रिपाठी ने कहा कि उन्होंने 25 सीआईएसएफ अधिकारियों और जवानों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है। जिन्होंने संयंत्र की सीमाओं के बाहर आकर शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन कर रहे श्रमिकों पर हमला किया था। बुजुर्ग और महिला श्रमिकों को भी मारा। लाठीचार्ज में एक दर्ज़न से अधिक मजदूर घायल है। कैयो का हाथ पाव टुटा है। उन्होंने दावा किया कि सीआईएसएफ के पास सिविलयन इलाकों में जाकर श्रमिकों पर लाठीचार्ज करने का कोई अधिकार नहीं है।
त्रिपाठी ने बीएसएल प्लांट प्रबंधन की असंवेदनशीलता की भी आलोचना की। उन्होंने कहा कि बीएसएल प्रबंधन एक चाल के तहत पहले पिटवाया फिर वार्ता के लिए बुलाया।
बोला जा रहा है कि बोकारो इस्पात प्रबंधन (BSL) का सम्बंधित विभाग इस मामले को सही ढंग से डील करने में फेलियर रहा। इतने दिनों से मजदुर बीएसएल के हेडक्वार्टर के सामने धरना दे रहे थे। किसी भी वरीय अधिकारी, खासतौर पर पर्सनल और आईआर विभाग के इसको उतना सीरियसली नहीं लिया। अगर समय पर मजदूरों से मिलकर उनकी समसयाओ को सुन, समझ कर समझाया जाता तो यह घटना होने से बच सकती थी।
यह है मामला –
प्रदर्शनकारी कार्यकर्ता अपनी शिकायतें व्यक्त करने के लिए बुधवार को भवनाथपुर (गढ़वा) से बोकारो तक गए थे। पूर्व में सेल की तुलसीदामर डोलोमाइट खदान में कार्यरत थे, जो 2020 में बंद हो गई, इन श्रमिकों को अब आजीविका संकट का सामना करना पड़ रहा है। मजदुर खनन गतिविधियों को फिर से शुरू करने और अन्य रियायतें देने की मांग को लेकर धरना दे रहे है।
श्रमिकों ने खुलासा किया कि तुलसीदामर डोलोमाइट खदान में 2,000 से अधिक अपंजीकृत श्रमिक तीस वर्षों से अधिक समय से कार्यरत थे। हालाँकि, फरवरी 2020 में इसके बंद होने के बाद, उनके पास आजीविका का कोई साधन नहीं बचा है। उनके विरोध का उद्देश्य उनकी स्थिति पर ध्यान आकर्षित करना के साथ-साथ उनकी मांगों का समाधान निकालना था।