आगामी लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा (BJP) फिर सांसद पशुपतिनाथ सिंह को धनबाद सीट से टिकट देगी या नहीं ? इस पर इन दिनों चर्चा का माहौल गर्म है। कई बार सांसद महोदय ने भी अपना मंतव्य इस पर दिया है। इन अटकलों के बीच पूर्वी सिंहभूम विधायक सरयू राय का बार-बार धनबाद भ्रमण भी चर्चा में है। उनकी भाजपा वापसी और लोकसभा चुनाव में धनबाद सीट पर उनकी रूचि को हवा दे रही है। लोगो तरह-तरह के कयास लगा रहे है।
बरसाती मेढ़क की तरह टर्र-टर्र कर रहे है सरयू राय: सांसद पी एन सिंह
इसी बीच शुक्रवार को धनबाद विधायक राज सिन्हा के वनभोज कार्यक्रम में भाजपा सांसद पशुपतिनाथ सिंह का विधायक सरयू राय के बारे में कुछ शब्द बोलकर चुटकी लेने से राजनितिक माहौल गर्म हो गया। सरयू राय ने शनिवार को तीखी प्रतिक्रिया दी है। बताया जा रहा है कि धनबाद सांसद ने वनभोज कार्यक्रम में सरयू राय के लगातार धनबाद दौरे पर यह कह दिया कि “चुनाव पास देख बरसाती मेढक की तरह टर्र-टर्र कर रहे है सरयू राय। न धनबाद में उनका कोई आधार है, न ही जनता उन्हें जानती है। मीडिया में बने रहने के लिए अनाप-शनाप बोलते रहते है”।
इसके प्रतिक्रिया में सरयू राय ने शनिवार को धनबाद सांसद पशुपतिनाथ सिंह का पूरा राजनितिक इतिहास लिख दिया।
श्री पीएन सिंह पड़ोस की सीट पर चुनाव लड़े थे और ज़मानत गंवा बैठे थे: सरयू राय
विधायक सरयू राय (Saryu Roy) ने कहा कि धनबाद के मित्रों ने सांसद श्री पशुपति नाथ सिंह ( MP Dhanbad Pasupatinath Singh) का वन भोज के अवसर पर दिए गए वक्तव्य की वहाँ के अख़बारों मे छपी समाचार की कतरनें मुझे भेजा है.
सांसद श्री पी एन सिंह के इस बयान से मैं शत प्रतिशत सहमत हूँ कि उनसे मेरी राजनीतिक तुलना ग़लत है. राजनीति के अलावा वे किसी अन्य सामाजिक- सांस्कृतिक- पर्यावरणीय आदि क्षेत्रों में तो उनके साथ मेरी तुलना होने का सवाल ही नहीं है कारण कि राजनीति के अलावा अन्य किन्ही क्षेत्रों में तो उनकी सक्रियता कभी रही ही नहीं.
मेरे बारे में अपनी भड़ास निकलते समय उन्होंने जो कहा उसपर मैं संक्षिप्त टिप्पणी दे रहा हूँ. पर इसी वक्तव्य मे स्वनामधन्य पी एन सिंह जी ने भाजपा पर जो एहसान जता दिया है कि “उन्होंने भाजपा की झोली में वह सीट पहली बार डाल दिया था”। जिसपर आज़ादी के बाद भाजपा कभी जीत नहीं पायी थी. यह पार्टी के उपर इनके निजी अहंकार का द्योतक है.
उनके इस वक्तव्य को भाजपा किस कदर लेती है वह मैं भाजपा के धनबाद, राँची और दिल्ली के नेताओं/ कार्यकर्ताओं पर छोड़ता हूँ. पर यह उल्लेख अवश्य कर देना चाहता हूँ कि भाजपा पर यह एहसान थोपने के ठीक पहले भी श्री पीएन सिंह पड़ोस की सीट पर चुनाव लड़े थे और केवल 5400 वोट लाकर ज़मानत गँवा बैठे थे.
इस चुनाव में इनके खड़ा होने का नतीजा यही निकला कि धनबाद के जो धाकड़ व्यक्ति इन्हें पार्षद का चुनाव जीताने के लिए अपनी प्रतिष्ठा दांव पर लगाकर दिन भर उस क्षेत्र में बैठे रहे और इन्हें जीत दिलाया, कुछ ही दिन बाद हुए विधानसभा चुनाव में श्री पीएन सिंह जी उन्हीं श्री बच्चा सिंह जी के खिलाफ खड़ा हो गए. अपनी ज़मानत गँवाया और बच्चा बाबू को हरवा कर एहसान का बदल चुका दिया.
तब अपने पुरुषार्थ की बदौलत वह सीट भाजपा की झोली में क्यों नहीं डलवा पाए, उसपर भी तो उन्हें अपनी ज़ुबान खोलनी चाहिए थी. धनबाद की धरती पर श्री पीएन सिंह जी के संबंध मे ऐसे कई उदाहरण हैं जिसका उल्लेख कभी बाद में होगा.
जिस समय बच्चा बाबू के अग्रज स्व॰ सूर्यदेव सिंह जी ने पीएन बाबू को धनबाद ज़िला जनता पार्टी का अध्यक्ष बनवाया था उस समय मैं उसी जनता पार्टी का अविभाजित बिहार का प्रदेश महासचिव था. उस समय की बातें याद करें तो सही मे पीएन सिंह जी के साथ भला मेरी राजनीतिक तुलना कैसे की जा सकती है?
जब पीएन सिंह कहते हैं कि श्री बाबूलाल मराण्डी की सरकार में वे उद्योग मंत्री थे तो उन्होंने मुझे विभाग की एक समिति मे स्थान दिलवाया था. यानी मुझे पहचान और प्रतिष्ठा दिलवाया. उन्हें अवश्य यह याद होगा कि वह समिति क्या थी और मुझे ही उसका अध्यक्ष कैसे और क्यों बनाया गया था. इसमें तत्कालीन राज्यपाल श्री प्रभात कुमार और तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री बाबूलाल मरांडी की क्या सोच थी.
उस सरकार में पीएन सिंह जी मंत्री कैसे बने यह तथ्य भी आज नहीं तो कल सामने आएगा. उन्हें याद नहीं हो तो बाबूलाल जी से पूछ लें कि उस मंत्रिपरिषद में मेरे लिए क्या स्थान रखा गया था और मैंने उसे क्यों स्वीकार नहीं किया. इसकी जानकारी भी वे प्राप्त कर लें. ऐसी स्थिति में उनका कथन ग़लत नहीं है कि मुझसे उनकी राजनीतिक तुलना नहीं की जानी चाहिए.
मैं उनकी भंडास पर अपने मुँह मियाँ मिट्ठू नहीं बनना चाहता, पर केवल इतना उल्लेख कर देना आवश्यक समझता हूँ कि 1974 में मुझे जेपी आंदोलन के रूप में विख्यात बिहार छात्र आंदोलन की प्रदेश संचालन समिति का सदस्य नामित किया गया था, 1977 में केन्द्र में जनता पार्टी की सरकार बनी तो 1977 में मुझे अविभाजित बिहार प्रदेश के भारतीय जनता युवा मोर्चा का प्रदेश संगठन मंत्री बनाया गया था.
रूस ने 1979 में अफ़ग़ानिस्तान पर हमला किया तो सीपीआइ – कांग्रेस को छोड़ देश के सभी राजनीतिक दलों ने मिलकर राष्ट्रीय स्तर पर एक संयुक्त अभियान समिति बनाया था जिसमें सीपीएम और नक्सल संगठन भी शामिल थे. उस समय मुझे इस अभियान का बिहार का संयोजक बनाया गया था. जब श्री पीएन सिंह जी यह बताना चाहते हैं कि वे उद्योग मंत्री थे तब विभाग की एक समिति में मुझे स्थान देकर उन्होंने मुझे पहचान और प्रतिष्ठा दिलाया तब उनपर तरस खाने के सिवाय किया क्या जा सकता है?
मेरे साथ उनकी राजनीतिक तुलना नहीं करने की बात कहकर श्री पीएन सिंह ने भड़ास निकालने के लिए ही सही एक सच्चाई उजागर कर दी है.
मुझमें उन्हें बरसाती मेंढक नज़र आता है. दामोदर नद धनबाद लोकसभा के बीचोंबीच प्रवाहित होता है. मैं और दामोदर क्षेत्र के मेरे सहयोगी दामोदर को प्रदूषण मुक्त करने के लिए दामोदर बचाओ आंदोलन के बैनर तले 2004 से अभियान चला रहे हैं जिसका संज्ञान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और तत्कालीन ऊर्जा एवं कोयला मंत्री पीयूष गोयल ने लिया, बैठकें बुलाया.
इस अभियान में मेरा धनबाद आना-जाना तबसे साल में दो चार बार हर साल लगा रहता है. पर इसका संज्ञान श्री पीएन सिंह चुनाव के समय ही लेते हैं. एक बार राँची मे सीसीएल मुख्यालय पर इस बारे में हुए महाधरना में कुछ क्षण के लिए शामिल होने के सिवाय श्री पीएन सिंह कभी भी कार्यक्रमों में भाग नहीं लिया. बल्कि धनबाद में तो वे और उनके समर्थक इसके विरोध में ही रहे. कौन चुनाव के समय टर-टराने वाला मेंढक है यह समय बता देगा.
विधायक, मंत्री, सांसद के रूप में उन्होंने झारखंड के लिए और धनबाद के लिए किया किया है और जिन्हें सीढ़ी बनाकर उपर चढ़े यह बात भी समय आने पर विस्तार से सामने आएगी. धनबाद के लोग इसे बेहतर जानते हैं इसलिए यह सब फिर कभी.