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दिशोम गुरु शिबू सोरेन नहीं रहे: झारखंड की आत्मा ने चुपचाप विदा ली


Bokaro: झारखंड के माटी पुत्र, आदिवासी आंदोलन के शिखर पुरुष और झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक दिशोम गुरु शिबू सोरेन (Shibu Soren) का 81 वर्ष की उम्र में आज सुबह दिल्ली के गंगाराम अस्पताल में निधन हो गया। सुबह 8:56 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। वे पिछले कई महीनों से अस्वस्थ चल रहे थे। उनके निधन की खबर जैसे ही फैली, पूरे झारखंड पर शोक का साया छा गया।

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने दी भावुक श्रद्धांजलि


मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने एक गहरे दर्द के साथ अपने X पोस्ट में लिखा, “आदरणीय दिशोम गुरुजी हम सभी को छोड़कर चले गए हैं। आज मैं शून्य हो गया हूँ…” इस संदेश ने हर दिल को झकझोर दिया। जो सुनता गया, स्तब्ध होता गया। गांव से लेकर राजधानी तक शोक की लहर दौड़ गई। सिर्फ एक नेता नहीं, बल्कि झारखंड की आत्मा ने आज शरीर छोड़ दिया।

एक जीवन, जो आंदोलन से संसद तक पहुंचा
नेमरा गांव से 1944 में शुरू हुई उनकी यात्रा संघर्ष और बलिदान से भरी रही। आदिवासी अधिकारों के लिए उन्होंने जमीन से लेकर संसद तक आवाज़ बुलंद की। तीन बार मुख्यमंत्री, सात बार सांसद और केंद्र में कोयला मंत्री के रूप में देश की राजनीति को नया आयाम दिया। उनकी राजनीति जनसेवा का प्रतीक रही, जो शोषितों और आदिवासियों की पीड़ा से गूंजती थी।

बोकारो: दूसरा घर, आज ग़मगीन
दिशोम गुरु शिबू सोरेन के राजनीतिक जीवन में बोकारो का विशेष स्थान रहा। उन्होंने बोकारो को हमेशा नेमरा के बाद अपना दूसरा घर माना। सेक्टर I/C स्थित उनका आवास—क्वार्टर नंबर 14—आज मौन है, स्तब्ध है, जैसे कोई अपने अभिभावक को खो बैठा हो। स्थानीय लोग उनकी यादों में डूबे हैं और हर आँख नम है।

झारखंड ने खोया अपना पहरेदार
शिबू सोरेन का जाना केवल एक राजनेता का निधन नहीं है, यह एक युग का अंत है। एक ऐसी आवाज़, जो जंगल, जमीन और जल के अधिकारों के लिए कभी नहीं थकी। उनके जाने से एक खालीपन है जो कभी नहीं भरेगा।

 

 

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