Bokaro: एक कहावत है- लकीर का फकीर होना। यानी जो जैसा चलता रहा है, उसी तरह पुरानी परिपाटी का अनुसरण कर उसी रास्ते पर चलते रहना। लेकिन, उसने खुद के लिए लकीर के मायने ही बदल दिए हैं। उसकी खिंची लकीर उसका तकदीर बनेगी और उन्हीं लकीरों से तैयार उसके डिजाइन देश के नामी-गिरामी कंपनियों के उत्पादों में नयापन लाएंगे।
हम बात कर रहे हैं दिल्ली पब्लिक स्कूल (DPS) बोकारो के होनहार विद्यार्थी हार्दिक श्री की। 18 वर्षीय हार्दिक ने मेडिकल-इंजीनियरिंग की परंपरागत सामाजिक अवधारणा से संबंधित ‘लकीर का फकीर’ होने की बजाय लकीरों को ही अपने करियर का आधार बनाया और देश के सबसे बड़े डिजाइनिंग संस्थान राष्ट्रीय डिजाइन संस्थान (एनआईडी) में अपनी जगह पक्की कर ली। इसी वर्ष 12वीं की परीक्षा 90 फीसदी अंकों के साथ उत्तीर्ण हुए हार्दिक ने डिजाइनिंग की तीन-तीन राष्ट्रस्तरीय परीक्षाओं में कामयाबी पाई है।
एनआईडी के प्रीलिम्स (प्रारंभिक परीक्षा) में हार्दिक ने आल इंडिया रैंक 6 हासिल की और मेन (मुख्य परीक्षा) में एआईआर 48 मिली। इसके अलावा, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी (एनआईएफटी) में रैंक 13 और आईआईटी के तहत संचालित अंडर ग्रेजुएट कॉमन एंट्रेंस एग्जामिनेशन इन डिजाइन (यूसीईईडी) में रैंक 89 भी मिली हैं। लेकिन, एनआईडी से ही अब वह अपने सपनों को उड़ान देने की दिशा में आगे बढ़ चला है। इसमें चयनित होने के बाद उसकी काउंसलिंग हो चुकी है और अब सीट आवंटन प्रक्रिया के तहत एनआईडी अहमदाबाद या कुरुक्षेत्र से वह चार साल का कोर्स पूरा करेगा।
काउंसलिंग से लौटने के बाद मंगलवार को हार्दिक ने डीपीएस बोकारो पहुंचकर प्राचार्य डॉ. एएस गंगवार से शिष्टाचार भेंट की और इस कामयाबी में विद्यालय की केंद्रीय भूमिका के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की। प्राचार्य डॉ. गंगवार ने हार्दिक को बधाई देते हुए उसके उज्जवल भविष्य की कामना की। प्राचार्य ने कहा कि डीपीएस बोकारो अपने विद्यार्थियों को हर वह अवसर प्रदान करता है, जिससे कि वे विभिन्न क्षेत्रों में अपना भविष्य संवार सकें।
कठिन परीक्षा के बाद मिली सफलता
हार्दिक ने एक खास बातचीत में बताया कि जिस प्रकार मेडिकल-इंजीनियरिंग में हजारों सीट है, डिजाइनिंग के क्षेत्र में वैसी स्थिति नहीं है। देशभर से मात्र 400 परीक्षार्थी एनआईडी और मात्र 200 यूसीईईडी में चयनित हो पाते हैं। कोलकाता में आयोजित एनआईडी मेन में उसे आइडिएशन, क्रिएटिविटी, साइकोलॉजी और ऑब्जर्वेशन सहित विभिन्न चरणों से संबंधित परीक्षा देनी पड़ी और बेहतर प्रदर्शन के आधार पर चयनित किया गया। उसने बताया कि रेखाचित्र, चित्रांकन और लकीरों की कलाकारी तकनीक और विश्लेषण के आधार पर जब मूर्त रूप लेती है, जो परफेक्ट डिजाइन बनती है। आज के समय में इसमें करियर की असीम संभावनाएं हैं।
मां ने निभाई दोहरी जिम्मेदारी
हार्दिक की सफलता के पीछे उसकी मां बबीता सिंह ने केंद्रीय भूमिका निभाई है। पारिवारिक परेशानियों के बीच बबीता ने हार्दिक को मां के साथ-साथ पिता का भी प्यार दिया। कठिन चुनौतियों के बीच उन्होंने हिम्मत न हारी और अपने हौसलों और अपनी ताकत के बूते अपने बेटे को इस लायक बनाया कि आज वह न सिर्फ डिजाइनिंग, बल्कि पढ़ाई-लिखाई, खेलकूद और संगीत की विधाओं में ही पारंगत हो चुका है। हार्दिक की रुचि के अनुसार उसके करियर को संवारा और आज उसकी तकदीर एक नए उज्जवल मुहाने पर है। एक सवाल के जवाब में हार्दिक ने कहा कि उसकी मां ही उसके लिए जीवन की सबसे बड़ी प्रेरणा है, जिनका संघर्ष उसके लिए अनुकरणीय है।
पढ़ाई के साथ डिजाइनिंग थी बड़ी चुनौती
हार्दिक ने एक सवाल के जवाब में बताया कि 12वीं की पढ़ाई करते हुए डिजाइनिंग करते रहना सबसे अधिक चुनौतीपूर्ण था। उसने सबको साथ बखूबी मैनेज किया। बेहतर समय-प्रबंधन और लगन की बदौलत उसने न सिर्फ डिजाइनिंग की तीन-तीन राष्ट्रीय परीक्षाओं में सफलता पाई, बल्कि 12वीं में भी 90 फीसदी अंकों के साथ उत्तीर्णता हासिल की। इसके पूर्व, 10वीं में उसे 95 फीसदी अंक मिले थे। वह संगीत की राष्ट्रस्तरीय प्रतियोगिता में अपने विद्यालय को प्रथम पुरस्कार दिला चुका है। गायन में इंडियन आइडल तक भी वह पहुंच चुका है। वहीं, बास्केटबॉल भी काफी अच्छी तरह उसे खेलना आता है।
नाकामी से हारे नहीं, खुद को एक्सप्लोर करें
हार्दिक ने असफलता से घबराकर गलत कदम उठानेवाले युवाओं को अपने संदेश में कहा कि पढ़ाई-लिखाई या करियर संबंधी कोई परीक्षा जीवन की आखिरी परीक्षा नहीं होती। फेल होने पर हताश होने की बजाय अपनी रुचि को देखते हुए खुद को एक्सप्लोर करें, अपनी प्रतिभा को विस्तार दें, अवसर और सुखद परिणाम जरूर मिलेंगे।