Bokaro: दिल्ली पब्लिक स्कूल (डीपीएस) बोकारो के संगीत शिक्षक मयंक कुमार भक्त ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा का परचम लहराते हुए पूरे झारखंड को गौरवान्वित किया है। तबला शिक्षक मयंक को विश्वरत्न सम्मान 2024 से नवाजा गया है। नीति आयोग तथा सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय, भारत सरकार से संबद्ध संगठन वर्दी वेलनेस फाउंडेशन ने वैश्विक स्तर पर संगीत शिक्षकों के लिए हाल ही में एक स्पर्धा करवाई थी।
इसमें संबंधित वर्ग में सर्वश्रेष्ठ प्रविष्टि के लिए एकमात्र मयंक को उक्त सम्मान के लिए चयनित किया गया। संगीत-शिक्षण के प्रति समर्पण, लगन एवं संगीत के माध्यम से विद्यार्थियों की प्रतिभा निखारकर जीवन में समृद्धि को प्रोत्साहित करने के लिए उन्हें पुरस्कृत किया गया है।
उन्होंने बच्चों को संगीत सिखाने के नवोन्मेषी तरीके एवं आयुवार उन्हें समझाने की रोचक विधियों को लेकर अपनी प्रविष्टि भेजी थी। उन्हें पुरस्कार-स्वरूप प्रशस्ति-पत्र, शील्ड व मेडल प्राप्त हुआ। गुरुवार को विद्यालय के प्राचार्य डॉ. ए एस गंगवार ने मयंक को इस विश्व-प्रतिष्ठित सम्मान के लिए बधाई देते हुए उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना की। मयंक ने शिक्षकों को प्रोत्साहित करने की दिशा में विद्यालय के योगदान तथा प्राचार्य डॉ. गंगवार के मार्गदर्शन को महत्वपूर्ण बताते हुए इसके लिए अपनी कृतज्ञता व्यक्त की।
राष्ट्रीय स्तर पर पहले भी मिले हैं कई पुरस्कार, विरासत में मिला संगीत
26 वर्षीय मयंक को तबला-वादन के साथ-साथ गायन व नृत्य विधा की भी अच्छी जानकारी है। इसके पूर्व, उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर टैलेन्ट हंट विजेता, टीचर इनोवेशन अवार्ड, राष्ट्रीय प्रतिष्ठा पुरस्कार, यूथ फेस्टिवल गोल्ड अवार्ड, स्वर संगम अवार्ड, दूरदर्शन-आकाशवाणी पुरस्कार सहित अन्य कई पुरस्कार भी मिल चुके हैं। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) से संगीत में स्नातकोत्तर की डिग्री अर्जित करने वाले मयंक को संगीत अपने परिवार से ही विरासत में मिली। उनके पिता दिवाकर भक्त कतरास (धनबाद) में संगीत शिक्षक पद से सेवानिवृत्त हैं और उनके बड़े भाई भानुदय भक्त भी संगीत शिक्षक हैं। माता प्रेमलता देवी को भी संगीत में रुचि रही है।
इसके अलावा, मयंक ने बीएचयू में संगीत विभागाध्यक्ष डॉ. प्रवीण उद्धव, पं. किशोर मिश्रा एवं पं. समर साहा से संगीत की विधिवत तालीम ली है। बीएचयू में पढ़ाई के दौरान उन्हें सीसीआरटी (सांस्कृतिक स्रोत एवं प्रशिक्षण केन्द्र) से विशेष छात्रवृत्ति भी मिल चुकी है। जालंधर, दिल्ली, कोलकाता, वाराणसी, रांची सहित देश के विभिन्न शहरों में उन्होंने राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर के संगीत सम्मेलनों में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है।
संस्कार और धैर्य सिखाता है संगीत
बनारस घराने के तबला-वादन में हस्त-सिद्ध कलाकार मयंक अपनी विद्या से बच्चों को भी प्रतिभावान बनाना चाहते हैं। एक खास बातचीत में उन्होंने कहा कि संगीत संस्कार और धैर्य सिखाता है। इसमें सम्मान है और करियर की असीम संभावनाएं हैं। आकाशवाणी, रांची के आर्टिस्ट रह चुके मयंक को बचपन से ही संगीत में रुचि रही और अपने पिता की तरह उन्होंने भी इसमें ही अपना करियर बनाया। विद्यालय में शिक्षण-कार्य के अलावा वह प्रतिदिन चार से पांच घंटे रियाज करते हैं। संगीत-साधना में उन्होंने रियाज को एक अनिवार्य तपस्या बताया। उन्हें कविता-लेखन में भी रुचि है। मयंक अपने गुरुओं को ही अपना आदर्श मानते हैं।