रेवई- Special Correspondent
जहां से नद-नदियां गुजरती है, वहां सभ्यता-संस्कृति का विकास खुद हो जाता है. लेकिन, जब सभ्यता अति विकास की राह पकड़ ले तो नदियों के लिए ही काल बन जाती है. इस बात का जीता-जागता उदाहरण दामोदर नदी है. इस दामोदर नदी के आध्यात्मिक, प्राकृतिक, आर्थिक रूप के साथ अति-विकास के कारण इसकी स्थिति दयनीय होती जा रही है.
दामोदर झारखंड व बंगाल के लिए जीवनदायिनी है. देश के सबसे अमीर नदी में दामोदर का नाम पहले स्थान पर आता है. दामोदर अपने कोख में कोयला का असीम भंडार लिये हुए है. जहां से दामोदर नदी गुजरती है, वहां उद्योग का विकसित रूप नजर आता है. नदी आधारित दामोदर घाटी निगम परियोजना में चार बहुउद्देशीय बांध तिलैया डैम, मैथन डैम, कोनार डैम और पंचेट डैम का निर्माण किया गया. बंगाल में बाढ़ नियंत्रण, जल विद्युत, थर्मल पावर प्लांट, लगभग नौ लाख पचार हजार एकड़ क्षेत्र की सिंचाई, कृषि और उद्योग के सामान्य विकास के लिए परियोजना बनायी गयी.
दामोदर तट किनारे पतरातु थर्मल पावर स्टेशन, तेनुघाट थर्मल पावर स्टेशन, बोकारो थर्मल पावर स्टेशन व मैथन में हाइड्रो पावर प्लांट है. यह घाटी कोयला के भंडार से समृद्ध है. दामोदर घाटी को देश में कोकिंग कोयले का मुख्य केंद्र माना जाता है. इसके बेसिन में महत्वपूर्ण कोयला क्षेत्र झरिया, रानीगंज, पश्चिम बोकारो, पूर्वी बोकारो, बेरमो, रामगढ़, दक्षिण कनरपुरा, उत्तरी करनपुरा समेत कोल इंडिया की कई इकाई है. देश के पहले स्वदेशी इस्पात संयंत्र बीएसएल भी इसी नदी के कारण उत्पादन कर पाता है.
आर्थिक रूप के अलावा दामोदर नदी का धार्मिक महत्व बहुत मायने रखता है-
ब्रह्मपुत्र के बाद दामोदर ही नद है, जो पुलिंग भाव में बहता है. दामोदर को भगवान विष्णु से जोड़कर देखा जाता है. रजरप्पा में भैरवी नदी व दामोदर नद ( नदी का पुरुषत्व रूप) के संगम पर देवी माँ छिन्नमस्तिका के रूप में दर्शन देती हैं. देश का एकमात्र ऐसा देव स्थान है, जहां देवी मां भगवान विष्णु के ऊपर है. मुख्य मंदिर के ठीक पीछे भैरवी नदी जिसे देवी मां का रूप माना जाता है, वह दामोदर नद यानी भगवान विष्णु पर गिरती है. इसके अलावा दामोदर नद का इतिहास गंगा से भी पुराना है. झारखंड के पठार हिमालय से भी करोड़ों साल पुराने हैं.
400 मिलियन वर्ष पहले दामोदर घाटी का हुआ निर्माण –
हिमालय की उत्पत्ति लगभग 50 से 60 मिलियन वर्ष पहले शुरू हुई जब भारतीय प्रायद्वीप तिब्बत के पठार से टकराया. जब हिमालय बन रहा था उसी वक़्त मौजूदा झारखंड में भी काफी उथलपुथल हो रहा था. वैसे हिमालय बनने के करोड़ों साल पहले भी यहां उथल पुथल हुआ था, जिसका साक्ष्य यहां के चट्टानों में पड़े वलन से पता चलता है. आज से लगभग 400 मिलियन वर्ष पहले डेवोनियन काल में झारखंड में दामोदर घाटी का निर्माण हुआ, जहां से होके दामोदर नदी बहती है. इस काल को मत्स्य काल भी कहते हैं.
देवनद दामोदर को सिर्फ जख्म ही मिला –
592 किलोमीटर लंबे दामोदर को देवनद माना जाता है, आर्थिक रूप से दामोदर शक्तिशाली भी है. लेकिन, बदले में इंसानों के अतिविकासवादी चेहरा ने दामोदर को सिर्फ जख्म ही दिया है. कहीं जख्म प्रदूषण के रूप में मिला है, तो कहीं जख्म लूट के रूप में. केंद्र व राज्य सरकार दोनों मिलकर दामोदर को बर्बाद करने पर तुली है. केंद्र सरकार की इकाई कोल इंडिया व सेल ने दामोदर को इतना जख्म दिया है कि कहीं इसके पानी का रंग बदल गया है, तो कहीं दामोदर की चाल बदल गयी है. मस्ती से बहने वाला दामोदर को कोल इंडिया ने जहां-तहां से मोड़ दिया है. वहीं सेल की इकाई बोकारो इस्पात संयंत्र का रासायनिक पानी दामोदर का दम ही घोट रहा है. रहा-सहा कसर माफिया लोग कर रहे हैं. कहीं तट से बालू का बेधड़क उठाव तो कहीं तट से मिट्टी की कटाई के कारण नदी का अस्तित्व ही खतरे में आ गया है.
रो-रोकर हो चूका है दामोदर का पानी लाल-
बीएसएल प्लांट के 04 नंबर गेट के पास से एक खुला नाला दामोदर नदी में जाकर मिलता है. इसी नाले के माध्यम से केमिकल युक्त पानी दामोदर नदी में गिराया जाता है. 2018 तक लगातार रासायनिक पानी दामोदर में गिराया जाता था, लेकिन दामोदर बचाओ अभियान के आंदोलन व सख्ती के बाद यह पानी 15-20 दिन के अंतराल में गिराया जाता है. केंद्र सरकार की इकाई बीएसएल पर जब भी दवाब दिया जाता है, तो वह जीरो डिस्चार्ज वाटर सिस्टम विकसित करने की बात करता है. लेकिन, यह सिस्टम कब तक विकसित होगा, इसका कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिल पाता है. बीएसएल के अलावा डीवीसी का पावर प्लांट भी रह-रह कर दामोदर में कभी राख तो कभी डीजल बहा देता है. हालांकि, दामोदर बचाओ आंदोलन की कोशिश के कारण अब ऐसी स्थिति बहुत कम आती है.
दामोदर का जल स्तर तेजी से जा रहा नीचे –
प्रदूषण के अलावा दामोदर को सबसे ज्यादा खतरा बालू चोरी व नदी तट से मिट्टी की चोरी से है. फुसरो के पास दामोदर नदी का बालु उठाव इतना बेहिसाब तरीका से हुआ है कि नदी तट के कई ब्लॉक में बालू ही नहीं बचा. स्थिति ऐसी हो गयी है कि नदी तट पर खाली पैर टहलना भी मुश्किल हो गया है. इसके अलावा करगली के पास से भी बालू का उठाव भी बिना वैज्ञानिक तरीका के हो रहा है. यहीं बगल में मिट्टी का कटाव भी किया जा रहा है. इसका दुष्परिणाम भी दिखने लगा है. दामोदर बचाओ अभियान से जुड़े गुलाबचंद्र व दिल्ली के मनीष कुमार ने भूर्गभ जल के बचाव को लेकर पतरातू से तेलमच्चो तक इस संबंध में अध्ययन किया है. जिसमें पाया है कि तेजी से दामोदर का जल स्तर तेजी से नीचे जा रहा है. वर्ष 1962 से 2015 तक तुलना करने पर पाया गया कि भूर्गभ जल 13 फीट नीचे चला गया है. दामोदर के सतह का पानी भी कही-कही मात्र तीन-चार इंच ही फ्लो पाया गया है.
इन शहरों ने तो दामोदर का जीना मुहाल कर दिया-
माफिया चोरी व औद्योगिक प्रदूषण के साथ-साथ नागरिय प्रदूषण भी दामोदर को परेशान कर रहा है. नद किनारे बसे तमाम शहर का नाला दामोदर में मिलता है. इस नाला से आता है कचरा, साबुन-डिटरजेंट का रासायनिक कचरा. इससे पानी में घुलित ऑक्सीजन पर असर होता है. एक अनुमान के मुताबिक प्रतिदिन दामोदर में 05 से 07 लाख गैलन घरेलू कचरा के रूप में दूषित पानी गिराया जाता है. रामगढ़, फुसरो, चास, धनबाद जैसे शहरों ने तो दामोदर का जीना ही मुहाल कर दिया है. दामोदर को बचाने के नाम पर हर शहर में नमामि गंगे योजना के तहत नद क्षेत्र में आने वाले नगर निगम व नगर परिषद में सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाने की बात कही गयी है. लेकिन, प्लांट कब बनेगा इसका कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिलता. फंड जारी होता है, डीपीआर बनता है. डीपीआर में तकनीकी खामी आती है, फिर ढांक के तीन पात वाली कहानी दोहरायी जाती है.
अब तो दामोदर भी चुप होकर मानवीय रूष्ट व्यवहार को देखता है. वह देखता है कि महिना दो महिना में एक दो आरती उतार कर सफाई का संकल्प लेते लोग कैसे मुंह मोड़ लेते हैं. वो देखता है कैसे अंतिम यात्रा में पहुंचे लोग नद के जल से याचमन करने से भी हिचकने लगे हैं. दामोदर देखता है कैसे इंसान बदल गये हैं. देखने के बाद अपनी कोख से जनम देने वाले मानव संस्कृति से पुछता है… मैने तो दुनिया को तारा कौन करे मेरा उद्धार…
Mr. C P S Ravai is an eminent journalist associated with a prominent vernacular hindi daily.
(Disclaimer: The views and opinions expressed in this article are the personal opinions of the author. The facts, analysis, assumptions and perspective appearing in the article do not reflect the views of CB.)