झारखंड कांग्रेस में हाल ही में घोषित जिला अध्यक्षों की नियुक्तियों ने विवाद खड़ा कर दिया है। राहुल गांधी के सामाजिक संतुलन और समावेशी नियुक्तियों के विज़न के बावजूद बोकारो, धनबाद, रामगढ़ और पलामू जैसे जिलों में असंतोष की लहर है। कई पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं ने चिंता जताई है और नियुक्तियों को “असंतुलित” बताया है। उन्होंने चेतावनी दी है कि इससे पार्टी की आंतरिक एकजुटता और जमीनी संगठन कमजोर पड़ सकता है। कई नेताओं ने चेताया है कि यह असंतुलन कांग्रेस के वोट बैंक को प्रभावित कर सकता है।
राहुल गांधी का संगठन सुधार का विजन
अहमदाबाद में 9 अप्रैल को हुई 84वीं एआईसीसी (AICC) बैठक के दौरान कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Ghandhi) ने पार्टी में बड़े सुधारों की आवश्यकता पर जोर दिया था। उन्होंने कहा था कि पार्टी की जड़ें मज़बूत करने के लिए सत्ता का विकेंद्रीकरण (Decentralisation) जरूरी है, और जिला अध्यक्ष संगठन की रीढ़ की हड्डी बनें। गांधी ने यह भी संकेत दिया था कि नियुक्तियों में सामाजिक और आर्थिक संतुलन को ध्यान में रखा जाए ताकि पार्टी का ढांचा अधिक समावेशी हो सके।
झारखंड में नियुक्तियों को लेकर मचा विवाद
राहुल गांधी की इन बातों के बावजूद झारखंड (Jharkhand) में हाल ही में घोषित जिला अध्यक्षों की सूची ने विवाद खड़ा कर दिया है। कई वरिष्ठ नेताओं और विधायकों ने इसे “असंतुलित (Imbalanced)” बताते हुए कहा है कि इस तरह की नियुक्तियां पार्टी की आंतरिक एकजुटता को कमजोर कर सकती हैं। पार्टी कार्यकर्ताओं का कहना है कि नियुक्तियों में सामाजिक संतुलन की अनदेखी की गई है, जिससे जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं का मनोबल प्रभावित हो रहा है।

बोकारो में बढ़ी नाराजगी: पिछड़े वर्ग की अनदेखी
बोकारो जिला, जहां चार विधानसभा क्षेत्र हैं — बोकारो और बेरमो सीटों पर कांग्रेस के विधायक हैं, दोनों ही राजपूत समुदाय से आते हैं। ऐसे में नए जिला अध्यक्ष के रूप में भूमिहार समुदाय के जवाहरलाल महथा की नियुक्ति से असंतोष फैल गया है। पार्टी कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह फैसला पार्टी की समावेशी नीति के विपरीत है और पिछड़े एवं वंचित वर्गों को दरकिनार किया गया है।
अन्य जिलों में भी उठे विरोध के स्वर
बोकारो ही नहीं, बल्कि पलामू, रामगढ़, धनबाद समेत कई जिलों में भी विरोध के स्वर सुनाई दे रहे हैं। रामगढ़ में कुरमी समुदाय से आने वाली विधायक ममता देवी को जिला अध्यक्ष बनाए जाने से अन्य नेताओं में नाराजगी है। वहीं धनबाद में संतोष सिंह की दोबारा नियुक्ति का विरोध करते हुए कई कार्यकर्ताओं ने उनके हटाने की मांग की है। पार्टी के भीतर यह चर्चा जोर पकड़ रही है कि नियुक्तियों में ‘पक्षपात’ किया गया है।
कांग्रेस नेताओं ने जताई नाराजगी
कई कांग्रेस नेताओं ने साफ कहा कि राहुल गांधी की ‘समावेशी संगठन’ की सोच को राज्य नेतृत्व ने नजरअंदाज कर दिया है। एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि पूरे राज्य में केवल तीन जिला अध्यक्ष ही पिछड़े वर्ग से हैं, जबकि अनुसूचित जाति वर्ग का प्रतिनिधित्व बोकारो, धनबाद और रामगढ़ जैसे अहम जिलों में लगभग गायब है। उन्होंने कहा कि देवघर और कोडरमा जैसे जिलों में भी नियुक्तियां प्रेरणादायक नहीं हैं, जिससे पार्टी की पकड़ कमजोर हो सकती है।
“प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व से काम नहीं चलेगा”
पलामू में पिछड़े वर्ग से बिमला कुमारी की नियुक्ति को लेकर भी सवाल उठे हैं। एक स्थानीय नेता ने कहा, “पलामू में तो पहले से ही हमारे समुदाय के विधायक राधा कृष्ण किशोर मंत्री हैं। बेहतर होता कि राज्य नेतृत्व उन जिलों में पिछड़े वर्ग के नेताओं को मौका देता, जहां विधायक सवर्ण वर्ग से हैं। इससे सामाजिक संतुलन भी बनता और कार्यकर्ताओं का उत्साह भी बढ़ता।”
पार्टी में असंतोष का असर संगठन पर पड़ने की आशंका
कांग्रेस कार्यकर्ताओं और समर्थकों का मानना है कि इन असंतुलित नियुक्तियों से पार्टी की छवि और आंतरिक सामंजस्य प्रभावित हो सकता है। कई लोग चिंतित हैं कि यदि सामाजिक प्रतिनिधित्व की कमी बनी रही, तो पार्टी जमीनी स्तर पर विविध मतदाता समूहों से जुड़ने की अपनी क्षमता खो सकती है।
