Bokaro: भारत सरकार के कोयला एवं खान राज्य मंत्री सतीश चंद्र दुबे ने सीसीएल (CCL) की दो प्रमुख परियोजनाओं, कारो कोल हैंडलिंग प्लांट और कोनार कोल हैंडलिंग प्लांट का शिलान्यास किया। ये परियोजनाएं बोकारो-करगली क्षेत्र में स्थापित की जा रही हैं।
इन दोनों परियोजनाओं की उत्पादन क्षमता क्रमशः 7 मिलियन टन और 5 मिलियन टन प्रतिवर्ष होगी। इस अवसर पर गिरिडीह के सांसद चंद्र प्रकाश चौधरी, बेरमो के विधायक कुमार जयमंगल, कोल इंडिया के चेयरमैन पीएम प्रसाद, सीसीएल के सीएमडी निलेंदु कुमार सिंह, और अन्य प्रमुख अधिकारी तथा बड़ी संख्या में लोग उपस्थित थे। मंत्री दुबे ने इस मौके पर कोनार परियोजना स्थल पर पौधरोपण भी किया।
पहली माइल रेल कनेक्टिविटी में महत्वपूर्ण भूमिका
कोनार और कारो कोल हैंडलिंग प्लांट्स पहली माइल रेल कनेक्टिविटी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। इन परियोजनाओं के माध्यम से कोयला खदानों से निकाला गया कोयला रेलवे सर्किट तक पहुंचाया जाएगा, जहां से इसे देशभर के ताप विद्युत संयंत्रों और अन्य उपभोक्ताओं तक भेजा जाएगा। वर्तमान में इन खदानों से कोयला सड़क मार्ग से रेलवे साइडिंग तक लाया जाता है, लेकिन इन परियोजनाओं के शुरू होने से यह प्रक्रिया अधिक सरल और तेज हो जाएगी।
कोनार कोल हैंडलिंग प्लांट की विशेषताएं
कोनार कोल हैंडलिंग प्लांट में रिसीविंग हॉपर, क्रशर, 10,000 टन क्षमता के कोयला भंडारण बंकर, और 1.6 किलोमीटर लंबी कन्वेयर बेल्ट जैसी सुविधाएं होंगी। 1,000 टन भंडारण क्षमता के साइलो बंकर से कोयला रेलवे वैगनों में सीधे स्थानांतरित किया जाएगा। इस परियोजना की कुल लागत ₹322 करोड़ है और इसके शुरू होने पर रेक लोडिंग समय 5 घंटे से घटकर 1 घंटा हो जाएगा। इससे कोयले का प्रेषण अधिक तेजी से होगा और रेक की उपलब्धता बढ़ेगी।
कारो कोल हैंडलिंग प्लांट की विशेषताएं
कारो कोल हैंडलिंग प्लांट में रिसीविंग हॉपर, क्रशर, 15,000 टन क्षमता के कोयला भंडारण बंकर और 1 किलोमीटर लंबी कन्वेयर बेल्ट होंगी। 4,000 टन भंडारण क्षमता वाले साइलो बंकर से कोयला सीधे रेलवे वैगनों में लोड किया जाएगा। इस परियोजना की लागत ₹410 करोड़ है और इससे रेक लोडिंग समय भी 5 घंटे से घटकर 1 घंटा हो जाएगा, जिससे कोयले की तेज़ प्रेषण प्रक्रिया संभव होगी।
पर्यावरणीय सुधार और दक्षता में वृद्धि
यह प्रणाली पूरी तरह से यंत्रीकृत और बंद-लूप प्रणाली होगी, जिससे कोयले का सड़क परिवहन समाप्त होगा और डीजल की खपत कम होगी। इससे न केवल प्रेषण प्रक्रिया में तेजी आएगी, बल्कि धूल और वाहन जनित प्रदूषण भी कम होगा, जिससे क्षेत्र के पर्यावरण में सुधार होगा।