Bokaro: स्वामिनी संयुक्तानंद सरस्वती ने कहा कि केवल पुरुषार्थ और मेघावी होने से बैराग्य की प्राप्ति नहीं होती है। बैराग्य और ब्रह्मकर्मी वही हो सकता है जो मन, मोह, मद, अहंकार से मुक्त है। जो मनुष्य संपूर्ण रूप से सारी कामनाओं से मुक्त है, सुख-दुख के द्वंद् से परे हो, जिस पर संसार की किसी माया का कोई प्रभाव नहीं पड़ता हो वह व्यक्ति ही साधना के मार्ग पर अग्रसर होने का अधिकारी होता है।
कठोपनिषद का उदाहरण देते हुए परम पूज्य स्वामिनी जी ने कहा कि कुछ व्यक्तियों की मंशा इतनी प्रकट होती है कि वह शास्त्र के वचनों को समझ लेते हैं लेकिन उसका अनुसरण जीवन में नहीं करते, इसका अभ्यास भी नहीं करते, इसीलिए शास्त्र का ज्ञान होने पर भी वह ब्रह्मपद के अधिकारी नहीं होते है। जो संसार अनित्य मानता है वही व्यक्ति अव्यय पद का अधिकारी होता है।
भगवान ने कहा है कि ब्रह्मपद बाहरी वस्तु नहीं है, यह तुम्हारे अंदर है, मनुष्य स्वयं है। यह परमतत्व अनुभव है प्रारंभिक यात्रा के लिए अंतकरण इस मार्ग का विचार करता है जब मनुष्य अपने आप को जान लेता है। उसे ना तो मन, बुद्धि, विवेकज़ ज्ञान, ज्ञानेंद्रिय एवं कर्मेंद्रियों की आवश्यकता नहीं होती है।
एक ओर मनुष्य जब अपने आप को जान लेता है, स्वर्ग के आत्म स्वरूप को जान लेता है, तो उसे किसी और वस्तु को जानने की आवश्यकता नहीं होती । वह मुक्त हो जाता है। जन्म- मरण, सुख- दुख के चक्र से वह बाहर निकल जाता है। सस्वामिनी जी ने कहा कि तेरा मेरा से ही लोग माया में फंसता हैं ममत्व के कारण ही संसार में लोग उलझते चले जाते हैं।
हर मनुष्य चैतन्य है, आत्मस्वरूप है लेकिन देहभाव के कारण अपने सनातन स्वरूप को विस्मृत कर देता है। वैसे मनुष्य परमात्मा से भिन्न नहीं है, परमात्मा से विलग कोई अस्तित्व नहीं है। इस प्रकार प्रवचन के स्वामिनी संयुक्तानंद जी ने श्लोकों के अर्थ को सरल भाषा में बताया।
इस अवसर पर चिन्मय मिशन बोकारो के सचिव हरिहर राउत, विद्यालय अध्यक्ष विश्वरूप मुखोपाध्याय, सहिव महेश त्रिपाठी, कोषाध्यक्ष आर एन मल्लिक, विद्यालय प्राचार्य सूरज शर्मा, लम्बोदर उपाध्याय,महाप्रबंधक, अशोक कुमार झा, सहित सैकड़ों भक्तों ने गीता ज्ञान यज्ञ का आनंद उठाया।