Bokaro: बोकारो शहर में इस साल नवरात्र के दौरान डांडिया और गरबा कार्यक्रमों की भरमार देखने को मिल रही है। पहले केवल एक-दो स्थानों पर ही डांडिया-गरबा का आयोजन होता था और वह भी पूरे श्रद्धा भाव और परंपरा के साथ। लेकिन इस बार हालात बिल्कुल अलग हैं। डांडिया-गरबा आयोजनों में पश्चिमी शैली और फूहड़ता ने धार्मिकता और संस्कृति को पीछे छोड़ दिया है। कई लोग जो अपने परिवार-बच्चों के साथ इस पवित्र दिनों में डांडिया खेलने पहुंचे थे, ऑर्केस्ट्रा जैसा माहौल और फूहड़ गानों पर ठुमके देखकर आहत और निराश हो गए।
सोशल मीडिया पर आक्रोश और प्रशासन की चुप्पी
लोगों का कहना है कि इन आयोजनों में डांडिया का नाम मात्र है, जबकि माहौल अधिकतर ऑर्केस्ट्रा और नाच-गाने जैसा है। सोशल मीडिया पर लोग लगातार पोस्ट और कमेंट कर नाराजगी जता रहे हैं। कई नागरिकों ने सवाल उठाया है कि जिला प्रशासन आखिर मूकदर्शक क्यों बना हुआ है? पवित्र नवरात्र जैसे अवसर पर अश्लील गानों और नृत्यों को रोकने के लिए कोई कदम क्यों नहीं उठाया जा रहा है?

भक्ति की जगह भोजपुरी गानों पर ठुमके
जहाँ देशभर में लोग गरबा और डांडिया को माँ दुर्गा की भक्ति के साथ मना रहे हैं, वहीं बोकारो से चौंकाने वाली तस्वीर सामने आई है। डांडिया के नाम पर आयोजित आयोजनों में भोजपुरी और अन्य फूहड़ गानों पर डांस हो रहा है। हाल ही में वेस्टर्न फॉर्म में आयोजित कार्यक्रम में अभिनेत्री आम्रपाली दुबे का डांस वीडियो वायरल हुआ, जिसमें वह “टूट जाई राजा जी पलंग सागवान के” जैसे गानों पर ठुमके लगाती नजर आईं। यह दृश्य देखकर कई लोग आहत हो गए।
बच्चों और संस्कृति पर बुरा असर

लोगों का आरोप है कि कुछ आयोजक धार्मिक आस्था के नाम पर केवल मुनाफाखोरी कर रहे हैं। इसके नाम पर न केवल भीड़ जुटाई जा रही है बल्कि अश्लीलता को बढ़ावा दिया जा रहा है। लोगों का कहना है कि ऐसे आयोजनों से बच्चों के मन में त्योहारों की गलत छवि बन रही है और वे भक्ति की जगह अश्लीलता को ही उत्सव का हिस्सा मानने लगेंगे।
नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं का बयान
इस मामले पर भाजपा जिला मीडिया प्रभारी महेंद्र राय ने कहा कि “डांडिया के नाम पर अश्लीलता परोसना हमारी संस्कृति का सीधा अपमान है। प्रशासन को तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए।” वहीं एक नागरिक ने भी कहा कि “ऑर्केस्ट्रा करने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन उसे डांडिया और गरबा का नाम देना गलत है। इससे युवा पीढ़ी को गलत संदेश मिल रहा है।”
संस्कृति बनाम व्यापार की लड़ाई
लोगों का आरोप है कि कुछ आयोजक धार्मिक आस्था के नाम पर केवल मुनाफाखोरी कर रहे हैं। इसके नाम पर न केवल भीड़ जुटाई जा रही है बल्कि अश्लीलता को बढ़ावा दिया जा रहा है। लोगों का मानना है कि इस तरह के आयोजनों से न केवल त्योहार की पवित्रता खत्म हो रही है, बल्कि नई पीढ़ी में भक्ति की जगह गलत धारणाएँ पनप रही हैं।

