Bokaro: प्रकृति का पर्व सरहुल को सेक्टर 8/ए स्थित सरना स्थल में बड़े धूमधाम के साथ मनाया गया। समाज के पाहन सुभाष पाहन और सूदन सुंबरूई ने विधिपूर्वक सरना स्थल में पूजा की। पूजा के उपरांत और लोगों को प्रसाद स्वरूप सखुआ का फूल और चना-गुड़ दिया। उन्होंने बताया कि इस वर्ष वर्षा अच्छी होगी, इसका लाभ किसानों को मिलेगा, फसलों की पैदावार इस वर्ष अच्छी होगी।
इस मौके पर सरना स्थल सेक्टर 8 / ए से शोभा यात्रा निकाली गई। जो सेक्टर 9 ए रोड,बसंती मोड़, सेक्टर 4 होते हुए भगवान बिरसा मुंडा चौक नया मोड़ तक पहुंची। शोभा यात्रा में सैकड़ो कि संख्या में आदिवासी महिला, पुरुष ,युवक, युवती ढोल, नागड़ा, मंदार की थाप पर नृत्य करते हुए पहुंचे।
सरहुल पर्व के मौके पर सरना समाज के उप सचिव राजीव मुंडा ने कहा कि, प्रकृति पर्व सरहुल प्रकृति मां के बिच सामंजस्यपूर्ण प्रेम का प्रतीक है। देव वृक्ष सखुआ अत्यंत मंगल कारी होता है, मां सरना और सिंगबोंगा को सखुवा फूल को उन्हे अर्पित किया जाता है। उसके बाद पहानो के द्वारा सखुआ फूल को श्रद्धालुओं के कानों में आशीर्वाद स्वरूप खोंसा जाता हैl
सरहुल पर्व समस्त मानव जीवन के कल्याण हेतु किया जाता है। प्रकृति अपनी विविध पुकारों के द्वारा अपना संदेश हम तक पहुंचाती रहती है।जिसे प्रकृति प्रेमी ही समझ पाने में सक्षम हैं। अतः हमे प्रकृति के साथ जुड़ कर रहना चाहिए, यही संदेश अपने साथ लेकर सरहुल पर्व आता है। इस मौके पर एतवा उरांव, चामू उरांव,पवन उरांव, जाय मगंल राजीव, अघनू,न्यूटन ,कामदेव ,बिसेस्वर ,राजदीप ,प्रदीप ,विकास ,अजय, विनोद,महेंद्र मुंडा आदि मौजूद थे।
चंदनक्यारी में भी मनाया गया सरहुल
सरहुल पर्व के शुभ अवसर पर चन्दनकियारी के उराँवडीह स्थित सरना स्थल में कार्यक्रम आयोजित किया गया। जिसमे चंदनक्यारी के पूर्व विधायक उमाकांत रजक हुए। उन्होंने कहा कि आज अगर प्रकृति सुरक्षित व संरक्षित है तो इसका श्रेय आदिवासियों को जाता है। आदिवासी मूलवासी द्वारा सम्पूर्ण झारखंड में नये वर्ष के प्रतीक के रूप में मनाये जा रहे सरहुल पर्व प्रकृति के प्रति आस्था एवं प्रेम प्रदर्शन का माध्यम है।
उन्होंने कहा कि सरहुल पूजा धरती माता को समर्पित है। माँ तो, जन्म देती है। लेकिन पालनपोषण धरती माँ ही करती है। सरहुल पर्व के अनुन्यायी नाच गाकर खुशियां तो मनाते हैं। लेकिन इस खुशी में धरती माता को आभार प्रकट करते है। प्रार्थना करते हैं कि धरती माँ हमेशा प्राकृति को ऐसे ही बनाये रखना ,ताकि इंसान अपने जन्म का उद्देश्य की प्राप्ति कर सके।
उन्होंने कहा कि झारखंड के लोगों को विरासत में प्राकृतिक सौदर्य मिला है। झारखंड धरती माता का गर्व अकूत खनिज संपदा से भरा है। लोग मेहनतकश हैं। तकनीकी कुशलता कूट कूट कर भरा हुआ है। झारखंडी लोगों के डीएनए में ईमानदारी भी है। यह राज्य के लोगों के लिए कमजोरी भी है। और ताकत भी। यदि झारखंडी दूसरे के निर्भरता से उबर कर अपनी नेतृत्व और योजना पर काम करें,तो झारखंड देश का सोने की चिड़िया जैसा राज्य बनने में देरी नहीं लगेगा।
रजक ने कहा कि चैत्र महीना में रामनवमी, रमजान एवं सरहुल जैसे तीनों बड़े पर्व का एक साथ होना ईश्वर को पसंद है। तो हम मानव को भी इस संयोग को ईश्वर की कृपा मानकर सभी इंसान के सुख समृद्धि एवं शांति का कामना करना श्रेयस्कर होगा। मौके पर मुख्य रूप से जिला परिषद प्रधान श्रीमति सुषमा देवी ,मुखिया तपन रजवार, सपन महतो, बाटुल राय, जलधर उरांव, गीता देवी ,गोविन्द उरांव, राधू महतो, संजय महतो ने भी सम्बोधित किया।