Bokaro: छठ महापर्व के दूसरे दिन संध्या को व्रतियों ने “खरना” पूजा के साथ अपना निर्जला व्रत आरंभ किया। गुरुवार शाम को व्रती नदी और अन्य छठ घाटों पर डूबते सूर्य को अर्घ्य देंगे, और शुक्रवार सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करके इस पावन व्रत का समापन होगा। Click to join Whatsapp: https://whatsapp.com/channel/0029Va98epRFSAsy7Jyo0o1x
खरना के लिए सुबह से तैयारी में जुटे व्रती
बुधवार सुबह से ही व्रतियों ने खरना की तैयारियाँ शुरू कर दी थीं। बर्तनों की सफाई और घर आंगन को गाय के गोबर से पवित्र किया गया। शाम को आम की लकड़ी से प्रसाद बनाया गया, जिसे संध्या के सूर्य देव को भोग लगाकर व्रतियों ने ग्रहण (खरना) किया, जो पूजा की पवित्रता का प्रतीक है।
Video: क्या है खरना का महत्व?
छठ पूजा के दूसरे दिन को “खरना” कहा जाता है, जिसका अर्थ है शुद्धिकरण। पंडित मार्कंडेय दुबे के अनुसार, “छठ व्रत में खरना प्रसाद का विशेष महत्व है क्योंकि यह शुद्धिकरण का प्रतीक है। खरना के दिन व्रतियों द्वारा दिनभर का उपवास रखकर शाम को गुड़ की खीर का प्रसाद तैयार किया जाता है। इस प्रसाद को सूर्य देव को अर्पित करने के बाद ग्रहण किया जाता है, जो आत्मशुद्धि का प्रतीक है।”
उन्होंने बताया कि “खरना प्रसाद ग्रहण करने से व्रती 36 घंटे के निर्जला व्रत के लिए तैयार होते हैं। इस प्रसाद में केवल शुद्ध सामग्री का उपयोग किया जाता है, जैसे आम की लकड़ी पर बनाए गए चूल्हे पर पकाया गया भोजन, जो परंपरा और श्रद्धा का प्रतीक है। Click to join Whatsapp: https://whatsapp.com/channel/0029Va98epRFSAsy7Jyo0o1x
36 घंटे का निर्जला व्रत और विशेष परंपराएं
खरना के प्रसाद ग्रहण करने के बाद व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला व्रत आरंभ होता है। परंपरागत रूप से इस दिन नए मिट्टी के चूल्हे और आम की लकड़ी का प्रयोग किया जाता है, जो शुभ माना जाता है। अगले दिन शाम को डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है, और उसके बाद अंतिम दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का समापन किया जाता है।
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