डॉ. प्रमोद शुक्ल| शिक्षक, मुख्यमंत्री उत्कृष्ट विद्यालय
हिन्दी भाषा का अस्तित्व आज एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है। अंग्रेजी की छाया में, हिन्दी का स्वरूप बदलता जा रहा है। हाल के वर्षों में, हिन्दी सिनेमा के नाम अंग्रेजी में रखे जाने लगे हैं और ये फिल्मों की सफलता की एक कुंजी बन चुके हैं। इसके बावजूद, हिन्दी बोलने वाले सितारे भी प्रायः अंग्रेजी का प्रयोग करते हैं। अंग्रेजी के प्रभाव के चलते, हिन्दी शब्दों को रोमन लिपि में लिखा जा रहा है और शब्दों का लिंग भी बदलता जा रहा है, जैसे योग को योगा, हिमालय को हिमालया, वेद को वेदा, आदि।
हिन्दी की स्थिति इस हद तक बदल गई है कि निजी विद्यालयों और प्रतिष्ठानों के नाम भी अंग्रेजी में रखे जाते हैं। यहां तक कि कई माताएँ अपने बच्चों को अंग्रेजी में गिनती सिखा रही हैं, जिससे बच्चों की हिन्दी समझ में भी बाधा उत्पन्न हो रही है। आजकल, बच्चों को सवाल पूछते समय ‘सतहत्तर’, ‘अठहत्तर’, ‘उनहत्तर’ में से कौन अधिक है, पूछने पर वे अक्सर भ्रमित हो जाते हैं।
हिन्दी दीवस पर, यह महसूस होता है जैसे किसी जवान लड़के ने अपनी माँ को खोजने की कोशिश की हो। कवि अकील नोमानी की पंक्तियाँ इस स्थिति की सटीक तस्वीर पेश करती हैं:
“टूट कर अनुबन्ध सारे रह गए, बस दर्द हिस्से में हमारे रह गए। खो गई संज्ञा न जाने फिर कहाँ, हम विशेषण के सहारे रह गए।”
भाषा की इस स्थिति पर चिंतन करते हुए, हमें यह स्वीकार करना होगा कि अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग तभी किया जाए जब हिन्दी में उनके पर्यायवाची न हों। अन्यथा, हिन्दी की पृष्ठभूमि और सांस्कृतिक धरोहर को समृद्ध करने के प्रयास जारी रखने चाहिए। गाँव-देहातों में आज भी ‘श्रीमान’ और ‘महोदय’ जैसे सम्बोधन का प्रयोग होता है, जबकि शहरी क्षेत्रों में अंग्रेजी शब्दों का रिवाज बढ़ता जा रहा है।
हिन्दी की इस क्षति का प्रमुख कारण है: मीडिया, फिल्मों, मोबाइल फोन और कंप्यूटर में अंग्रेजी का प्रचलन। इस स्थिति को बदलने के लिए, हमें अपनी मातृभाषा को गर्व से अपनाना होगा और अंग्रेजी के शब्दों का उपयोग केवल तब करना होगा जब हिन्दी में उनका कोई उपयुक्त विकल्प न हो।
हिन्दी और तमिल के विवाद की बात की जाती है, लेकिन यह सत्य है कि इस विवाद के बीच अंग्रेजी ने अपनी जगह बना ली है। इस स्थिति को समझते हुए, हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हिन्दी अपनी समृद्धि और सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखे। हिन्दी, इस देश की हवाओं और हमारी आत्मा में बसी हुई है, और इसका संरक्षण हमारे सामूहिक प्रयासों से ही संभव है।
आइए, हिन्दी दीवस के इस अवसर पर, हम सभी मिलकर हिन्दी की गरिमा को बनाए रखने का संकल्प लें और अपनी मातृभाषा के प्रति गर्व और समर्पण का प्रदर्शन करें।