बोकारो के कसमार प्रखंड स्तिथ हिसिम पहाड़ी के चार गांव के लोग दहशत में है। पिछले 10 दिनों से लगातार कोई हिंसक जानवर उनके मवेशियों को मार कर खा जा रहा है। हालाँकि की किसी भी व्यक्ति ने उस हिंसक जानवर को नहीं देखा है, पर लोगो का अनुमान है की वह शेर है। शेर के नाम की चर्चा इतनी हो रही है की अब कई लोग उस हिंसक पशु को शेर ही मानने लगे है।
पिछले 10 दिनों से लगातार मवेशियों के मारे जाने के कारणों की जांच वन विभाग ने शुरू कर दी है। मवेशियों के मारे जाने से ग्रामीणों में दहशत का माहौल है। हालाँकि मवेशियों को जंगलों में मारते हुए किसी ने नहीं देखा है, लेकिन मारने के पैटर्न को देखकर ग्रामीणों ने दावा किया है कि हो न हो उनकी मवेशियों को मारने वाला शेर ही है। लगभग छह दशक पहले हिसिम पहाड़ी के इस घने जंगल में शेर पाया जाता था, इसलिए लोग बार बार शेर आने की ही बात कर रहे है।
हिसिम पर्वत पर स्थित हिसिम, केदला, त्रिओनाला और गुमंजारा गांवों के ग्रामीण काफी दहशत में दिन बिता रहे हैं। यह स्थान जिला मुख्यालय से लगभग 38 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले के सीमावर्ती क्षेत्र में स्थित यह हिसिम का जंगल काफी बड़ा है। ग्रामीणों ने बताया कि जंगल में चरने गए उनके आधा दर्जन से अधिक मवेशी और बकरियां मृत पाई गईं है।
बोकारो के क्षेत्रीय मुख्य वन संरक्षक (आरसीसीएफ), डी वेंकटेश्वरलू ने मवेशियों के मारे जाने की सुचना पर जांच रिपोर्ट मांगी है। वन विभाग की टीम को सोमवार को हिसिम के जंगल में इन्वेस्टीगेशन के लिए भेजा है। वन विभाग की टीम जंगल में उस हिंसक जानवर के पैरो के निशान, मलमूत्र, बाल की तलाश की। मवेशियों के मिले कंकालों से मारने के पैटर्न का अध्ययन किया। जिसके आधार पर वे रिपोर्ट सौपेगी। ग्रामीणों का बयान भी दर्ज किया गया। जिन लोगों के मवेशी को उस हिंसक जानवर ने मारा हैं उन्हें मुआवजा दिया जाएगा।
जंगल में जाँच करने गए वनपाल विजय कुमार ने कहा, “एक जगह उस हिंसक जानवर के बाल मिलें हैं। इसके अलावा एक पैर का निशान दिखा था, लेकिन वह बहुत फीका था। जंगल में अलग-अलग जगहों पर एक गाय, बछड़ा और दो बकरियों का कंकाल मिला है। मिले जानवर के बाल को जाँच के लिए भेजा जायेगा, जिसके बाद ही वन विभाग शेर होने या न होने या कोई और जानवर होने की पुष्टि कर पायेगा।
मवेशियों के मारे जाने से ग्रामीण अपने मवेशियों को चरने के लिए जंगल में भेजना बंद दिए हैं। केडला निवासी कंदू मांझी ने बताया कि उन्होंने अपना बैल भी मरा हुआ पाया। उसने कहा कि “जब मेरा बैल दो दिनों तक घर नहीं लौटा, तो में उसकी तलाश में जंगल में गया जहां उसे आधा खाया हुआ कंकाल मिला। उसके अधिकांश भाग को शेर ने खा लिया था।”
बताया जा रहा है कि हिसिम के जंगल में शेर की मौजूदगी का इतिहास रहा है। ग्रामीणों ने बताया कि लगभग छह दशक पहले इस जंगल में शेर देखे जाते थे। केदला के एक समाजसेवी देवशरण हेम्ब्रम के मुताबिक दशकों पहले हिसिम के जंगल में शेर हुआ करते थे। उन्होंने बताया कि संताली भाषा में शेर को तरुव कहते हैं। इस जंगल के एक हिस्से को इसके कारण तरुव डूंगरी कहा जाता है। पहले यह जंगल शेरों का मुख्य ठिकाना हुआ करता था।
झामुमो नेता दिलीप हेम्ब्रम ने कहा कि इतने लंबे समय के बाद इस जंगल में शेर फिर कैसे और कहां से आया यह चिंता का विषय है। वन विभाग को इसकी जांच के साथ-साथ ग्रामीणों की सुरक्षा के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत है।
(फैलते-फैलते जब यह खबर स्थानीय पत्रकार दीपक सवाल के पास पहुंची तो उन्होंने इसकी सत्यता जानने के लिए जंगल की ओर रुख किया। दीपक सवाल, हिसिम पहाड़ पर स्तिथ उन गांव में पहुंचे। उसके बाद लोगों के बताये अनुसार उस घने जंगल में शेर का सच खोजने गए। जंगल घूमते हुए अलग-अलग हिस्से में उन्होंने मरे हुए मवेशियों की तस्वीर खींची। साथ ही एक जगह उन्हें हिंसक पशु के बाल भी पड़े मिले। जिसे वे अपने साथ ले आये और वन अधिकारियों को पुरे मामले की जानकारी दी। इसके बाद वन विभाग की टीम रेस हो गई। सोमवार को वन विभाग की टीम कसमार प्रखंड स्तिथ हिसिम पर्वत के घने जंगल पहुंची और मुयाना किया।)