Bokaro: झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के सदस्यों ने धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा की जयंती पर उनके मूर्ति पर माल्यार्पण किया। नयामेाड़ स्थिति बिरसा चौक पर झामुमो कार्यकर्ताओ ने बिरसा जयंती तथा स्थापना दिवस एक साथ मनाया।
झामुमो बोकारो महानगर अध्यक्ष मंटू यादव ने कहा कि भगवान बिरसा ने गुलाम भारत में अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ आंदोलन करते हुए उन्हें कई बार परास्त करने का काम किया। महान स्वतंत्रता सेनानी भगवान बिरसा की जयंती के मौके पर हम सभी को संकल्प लेना होगा, कि जिस प्रकार भगवान बिरसा ने गरीबों के शोषण के विरूद्ध आंदोलन किया, हमें भी गरीब व शोषित वंचित के लिए संघर्ष करना होगा।


आज झारखंड अलग राज्य का सपना साकार हुआ है और प्रदेश के मुखिया हेमंत सोरेन हैं तो विश्वास जगा है कि प्रदेश की सरकार गरीबों का काम करेगी। कार्यक्रम में मुख्य रूप से केंद्रीय सदस्य हसन अंसारी, मनोज हेंब्रम, कलाम अंसारी, राजकुमार सोरेन, अशोक हेंब्रम, वीरेंद्र यादव, मिथुन मंडल, बद्री स्वर्णकार, पप्पू सरदार, दालों यादव, अख्तर अंसारी, धीरेन महतो, अर्जुन महतो, विनोद महतो, लकी गोस्वामी, सोहन मुर्मू, प्रदीप सोरेन, सुनील सिंह, किशोर किस्कू, रब्बुल अंसारी थे।
झामुमो के महिला नेत्रीयो ने भी बढ़-चढ़कर कार्यक्रम में भाग लिया। भाग लेने वालो में शांति सोरेन, पूनम भारती और अलका श्रीवास्तव थी।
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कौन थे भगवान बिरसा मुंडा ?

बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 के दशक में छोटा किसान के गरीब परिवार में हुआ था। मुंडा एक जनजातीय समूह था जो छोटा नागपुर पठार (झारखण्ड) निवासी था। बिरसा जी को 1900 में आदिवासी लोंगो को संगठित देखकर ब्रिटिश सरकार ने आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया तथा उन्हें 2 साल की सजा दी गई थी। और अंत में 9 जून 1900 को लगभग सुबह 8 बजे मे अंग्रेजो द्वारा उन्हें जहर देने के कारण उनकी मौत हो गई।
1 अक्टूबर 1894 को नौजवान नेता के रूप में सभी मुंडाओं को एकत्र कर इन्होंने अंग्रेजो से लगान (कर) माफी के लिये आन्दोलन किया। 1895 में उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया और हजारीबाग केन्द्रीय कारागार में दो साल के कारावास की सजा दी गयी। लेकिन बिरसा और उसके शिष्यों ने क्षेत्र की अकाल पीड़ित जनता की सहायता करने की ठान रखी थी और जिससे उन्होंने अपने जीवन काल में ही एक महापुरुष का दर्जा पाया। उन्हें उस इलाके के लोग “धरती बाबा” के नाम से पुकारा और पूजा करते थे। उनके प्रभाव की वृद्धि के बाद पूरे इलाके के मुंडाओं में संगठित होने की चेतना जागी।
आज भी बिहार, उड़ीसा, झारखंड, छत्तीसगढ और पश्चिम बंगाल के आदिवासी इलाकों में बिरसा मुण्डा को भगवान की तरह पूजा जाता है। बिरसा मुण्डा की समाधि राँची में कोकर के निकट डिस्टिलरी पुल के पास स्थित है। वहीं उनका स्टेच्यू भी लगा है।
