बोकारो: झारखंड विधानसभा में आयोजित विशेष सत्र में संशोधन के साथ सरना आदिवासी धर्म कोड का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित होने की खुशी झामुमो के कार्यकर्ताओ ने बैंड-बाजा बजा कर बिरसा चौक में मनाया। अब यह प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजकर 2021 की जनगणना में सरना आदिवासी धर्म कोड का अलग कॉलम शामिल करने के लिए राज्य सरकार प्रस्ताव भेजेगी।
झामुमो के नगर अध्यक्ष, मंटू यादव ने कहा की झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की बोकारो जिला कमेटी वर्षो से आदिवासियों के लिए सरना आदिवासी धर्मकोड की मांग कर रही थी। जिसको मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने जो पूरा करने का काम किया । उन्होंने वादा भी किया था की अगर उनकी सरकार बनती है तो आदिवासी धर्मकोड को विधानसभा से पारित करके केंद्र को भेजा जाएगा ।


मंटू यादव ने कहा की झारखंड के पन्ने में आज एक ऐतिहासिक दिन है। झारखंड मुक्ति मोर्चा की बोकारो जिला कमेटी इस ऐतिहासिक फैसले के लिए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को तहे दिल से धन्यवाद करती है। निश्चित तौर पर उन्होंने आज दिखा दिया उनके नेतृत्व में झारखंड में सभी लोगों का विकास होगा, हर एक की बातें सुनी जाएंगी और आने वाले समय में सारी समस्याओं का समाधान किया जाएगा।
मौके पर जिला अध्यक्ष हीरालाल मांझी जिला सचिव जय नारायण महतो कोषाध्यक्ष अशोक मुर्मू ,झारखंड छात्र मोर्चा जिला अध्यक्ष महेश मीडिया प्रभारी कन्या सिंह मुंडा ,युवा प्रभारी अजय हेंब्रम उपेंद्र हेंब्रम दीनू पांडे ,जिला महिला जिला अध्यक्ष पूनम भारती, महिला जिला उपाध्यक्ष अंजलि सोरेन ,अलका श्रीवास्तव बोकारो महानगर अध्यक्ष महिला सृष्टि देवी , मंटू यादव, हसन, कलाम, सुरेंद्र कुमार, मुक्तेश्वर महतो, राजकुमार सोरेन ,प्रदीप सोरेन, आदि कार्यकर्ता लोग उपस्थित थे।
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सरना आदिवासी धर्म कोड :
सरना धर्म झारखण्ड के आदिवासियों का आदि धर्म है। परन्तु प्रत्येक राज्य आदिवासी ये धर्म को अलग-अलग नाम से जानते है और मानते है। सरना एक धर्म से अधिक आदिवासियों के जीने की पद्धति है जिसमें लोक व्यवहार के साथ पारलौकिक आध्यमिकता या आध्यत्म भी जुडा हुआ है। आत्म और पर-आत्मा या परम-आत्म का आराधना लोक जीवन से इतर न होकर लोक और सामाजिक जीवन का ही एक भाग है। धर्म यहॉं अलग से विशेष आयोजित कर्मकांडीय गतिविधियों के उलट जीवन के हर क्षेत्र में सामान्य गतिविधियों में गुंफित रहते है।
सरना अनुगामी प्राकृतिक का पूजन करते है। वह घर के चुल्हा, बैल, मुर्गी, पेड, खेत खलिहान, चॉंद और सूरज सहित सम्पूर्ण प्राकृतिक प्रतीकों का पूजन करते है। वह पेड काटने के पूर्व पेड से क्षमा याचना करते है। गाय बैल बकरियों को जीवन सहचार्य होने के लिए धन्यवाद देते है। धरती माता को प्रणाम करने के बाद ही खेतीबारी के कार्य शुरू करते हैं। वर्ष 2000 में अलग झारखंड राज्य के गठन के बाद आदिवासियों के लिए धर्म कोड की मांग जोर पकड़ी रही।
बता दें कि 1871 से 1951 तक की जनगणना में आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड का प्रावधान था मगर 1961 की जनगणना में इसे हटा दिया गया। उसके बाद से जनगणना के कॉलम में शामिल करने की मांग उठती रही। आदिवासी इसे अपने अस्तित्व, अपनी पहचान से जोड़कर देखते हैं। झारखंड की पहल के बाद केंद्र ने जनगणा में आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड की मंजूरी दे दी तो मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का कद देश के आदिवासियों के बीच बढ़ जायेगा। आदिवासियों की आबादी वाले अनेक राज्य जनगणना कॉलम में आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड की मांग करते रहे हैं।
