Bokaro: स्वास्थ विभाग की चार-सदस्यीेय टीम ने आज औचक निरीक्षण के दौरान शहर के बीचों बिच अवैध तरीके से चल रहे तीन अस्पतालों को पकड़ा। टीम के सदस्य इस बात को जानकर और हतप्रद हुए की उक्त अस्पताल बिना डॉक्टर के चल रहे थे और जो नर्सस और दूसरे स्टाफ उसमे कार्यरत थे, वह सभी अनट्रेंड थे। टीम ने बताया की इन सभी अस्पतालों में भर्ती पाए गए अधिकतर मरीजो की या तो सर्जरी हो चुकी थी या फिर सर्जरी होनी थी।
पर इन अस्पतालों के संचालको और डॉक्टर का नाम टीम के सदस्यों के लाख पूछने के बावजूद भी किसी ने नहीं बताया। टीम के सदस्यों ने इस संदर्ब में सिविल सर्जन, डॉ ऐ के पाठक और एसडीओ, शशि प्रकाश सिंह को सुचना दी है। जो तीन अस्पताल बिना रजिस्ट्रेशन के चलते पकड़े गए, उनमे से दो सिटी सेंटर स्तिथ – मोनू हॉस्पिटल और सुंदरम हॉस्पिटल – है। इसके अलावा तीसरा अस्पताल धर्मशाला मोड़ में मदर टेरसा के नाम से संचालित है। सिविल सर्जन ने बताया की यह तीनो अस्पताल बिना क्लीनिकल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट के पंजीकरण के ही चल रहे थे।


स्वास्थ विभाग के टीम के सदस्यों में जिला सर्विलांस पदाधिकारी, एन पी सिंह, रिप्रोडक्टिव एंड चाइल्ड हेल्थ ऑफिसर, डॉ कांता तिर्की, जिला महामारी अधिकारी, पवन कुमार श्रीवास्तव और जिला डेटा प्रबंधक, कंचन शामिल थे। टीम के एक सदस्य ने कहा की “हमे यह जान के अजीब लगा की ये तीनो अस्पताल बिना डॉक्टर के चल रहे थे। यह तो संभव नहीं था, की बिना किसी डॉक्टर के मरीजों की सर्जरी हो गयी हो। पर पूछताछ के दौरान न कोई डॉक्टर का नाम बोल रहा था न कोई डॉक्टर सामने आया। यहां तक कि जब हमने नर्सों से पूछा तो उन्होंने भी अपनी अनिभिज्ञता जाहिर की। मरीजों की नोटशीट में भी डॉक्टर का नाम नहीं था”।
टीम के सदस्यों को यह जानकर भी हैरानी हुई कि इनमें से अधिकांश मरीज सदर अस्पताल गए थे पर वहाँ से उन अस्पतालों में भेज दिए गए। अब यह तो जांच का विषय है की कौन उन मरीजों को सदर अस्पताल से इन अवैध चल रहे अस्पतालों में भेजता है? बताया जा रहा है की सदर अस्पताल के बाहर दलालों का बोलबाला है। हमेशा सदर अस्पताल के बाहर इन दलालो का एम्बुलेंस तथा आटो लगा रहता है। जिसे मरीज को निजी नर्सिंग होम में भेजा जाता है ।
टीम के सदस्य मदर टेरसा अस्पताल में एक पुरुष मरीज की बात सुनकर दंग रह गए, जो सड़क दुर्घटना का शिकार हो भर्ती हुआ था। रविवार को घायल होने के बाद वह सदर अस्पताल गया था, लेकिन वहां से उसे किसी के द्वारा चास स्तिथ मदर टेरसा अस्पताल भेज दिया गया था। जिला डाटा अधिकारी कंचन ने कहा, ”वह यह जानकर सन्न रह गयी की उक्त मरीज को उस अस्पताल में भर्ती होने के करीब 20 घंटे बाद भी कोई डॉक्टर देखने नहीं आया था। वहाँ के कर्मचारियों ने उसे सिर्फ प्राथमिक चिकित्सा दी थी। उसके पैर में शायद फ्रैक्चर था”। टीम के लोगो को उस मरीज का कहराना और दर्द देखा नहीं गया। उन्होंने एम्बुलेंस बुला उसे सदर अस्पताल शिफ्ट किया।
उसी मदर टेरेसा अस्पताल में एक डीलीवरी की मरीज थी, जिसने टीम के सदस्यों को बताया की वह दिसंबर, 12 को सदर अस्पताल में नावाडीह से 108 एम्बुलेंस से आई थी, लेकिन सदर में ड्यूटी कर रहे स्टॉफ द्वारा निजी एम्बुलेंस से मदर टेरेसा भेज दिया गया। दूसरे एक टीम मेंबर ने बताया की, सिटी सेंटर स्तिथ मोनू अस्पताल में, एक महिला मरीज ऐसी थी, जिसका हिस्टेरेक्टॉमी हुआ था। उसकी उम्र 25 साल थी। अधिकांशतः उस उम्र में बच्चेदानी की सर्जरी की आवश्यकता नहीं होती।
वहीं सुंदरम अस्पताल में दो रोगी थे, जिसमें एक महिला थी। उसका सीजेरियन ऑपरेशन हुआ था। ताज्जुब की बात यह थी की, उसका बच्चा सदर अस्पताल में भर्ती था। अब यह जाँच का विषय है की वह महिला उस अस्पताल में और बच्चा सदर हॉस्पिटल में। किस डॉक्टर ने उस महिला की डिलीवरी कराई? उन अस्पतालों में इस्तमाल किया हुआ इंजेक्शन और अन्य मेडिकल वेस्ट भी इधर-उधर पड़ा हुआ था। टीम के सदस्य अपनी रिपोर्ट में उन अस्पतालों के बोर्ड में लिखे हुए डॉक्टरों के नाम और नंबर की जाँच करने की अनुसंशा सिविल सर्जन से करेंगे।
सिविल सर्जन, डॉ ए के पाठक ने कहा कि टीम के सदस्य द्वारा निरीक्षण रिपोर्ट प्रस्तुत करने के बाद उन तीन अस्पतालों के खिलाफ कार्रवाई करेंगे।
