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Bokaro: झारखंड की पारंपरिक पाटकर चित्रकला की बारीकियों से अवगत हुए विद्यार्थी


Bokaro: गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के साथ-साथ विभिन्न विधाओं में अपने विद्यार्थियों के समग्र विकास की कटिबद्धता के तहत शनिवार को डीपीएस बोकारो में एक विशेष कार्यशाला आयोजित की गई। चित्रांजलि नामक इस कार्यशाला में विद्यालय के छात्र-छात्राओं ने झारखंड की पारंपरिक पाटकर चित्रकला की बारीकियां सीखीं। जमशेदपुर (पूर्वी सिंहभूम) के अमाडुबी पानीजिया ग्रामीण पर्यटन केंद्र से आमंत्रित पाटकर पेंटिंग के लब्ध-प्रतिष्ठित कलाकार विजय चित्रकार ने बच्चों को इस लोक-कला के गुर सिखाए। किस प्रकार कागज की शीटों को जोड़कर लंबे स्क्रॉल, एकल शीट अथवा कपड़े पर प्राकृतिक रंगों की मदद से विभिन्न तरह के चित्र बनाए जाते हैं, इसके बारे में सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक जानकारी उन्होंने दी।

विद्यार्थियों ने नदी तट के पत्थरों, हल्दी, पेड़ों की पत्तियां, पुटुस के फूल आदि से प्राकृतिक रंग तैयार करने का प्रशिक्षण लिया। उन्हें बताया गया कि पाटकर पेंटिंग को कपड़े या कागज पर बनाया जा सकता है। चित्रों को लंबे समय तक सुरक्षित रखने के लिए प्राकृतिक रंगों में नीम या बबूल की गोंद मिला दी जाती है। इसके बाद बच्चों ने श्री चित्रकार के निर्देशन में रामायण, महाभारत, आदिवासी जनजीवन, करम पर्व आदि विषयों पर चित्रांकन कर अपनी रचनात्मक प्रतिभा दिखाई। तत्पश्चात उनके द्वारा तैयार चित्रों की आकर्षक प्रदर्शनी भी लगाई गई। इस क्रम में विजय चित्रकार ने सृष्टि की उत्पत्ति, प्रकृति व मानवीय जीवन-चक्र पर आधारित अपनी एक स्क्रॉल पेंटिंग दिखाते हुए क्रमवार उसकी व्याख्या की।

नई पीढ़ी को जोड़ने से ही जीवित रहेगी कला : विजय चित्रकार
कार्यशाला के प्रशिक्षक 55 वर्षीय विजय चित्रकार ने बताया कि पाटकर चित्रकला स्थानीय संताली कथाओं, प्रकृति, ग्रामीण जीवन और पौराणिक कथाओं पर आधारित होती है। पश्चिम बंगाल, ओडिशा और झारखंड में विकसित हुई पाटकर पेंटिंग किस्सागोई, गीत-गायन और रोचक चित्रों के मिश्रण की कला है। धार्मिक कथाएं, पौराणिक कहानियां और दैनिक सामाजिक जीवन लोक-कथाओं के तत्वों के जरिए दर्शाने का यह माध्यम है। खासकर, हिंदू महाकाव्यों, जैसे- रामायण और महाभारत आदि की झलक इसमें मिलती है। 10 साल की उम्र से ही अपने दादा से सीखकर पाटकर पेंटिंग कर रहे विजय चित्रकार ने ऐसी विधाओं में बच्चों की जागरुकता को जरूरी बताया। कहा कि नई पीढ़ी को जब ऐसी लोक-कलाओं से जोड़ेंगे, तभी इसे आगे बढ़ाया और जीवित रखा जा सकता है। विदित हो कि विजय राष्ट्रीय स्तर की कई कार्यशालाओं में भी शामिल होकर झारखंड की इस कलात्मक धरोहर को एक खास पहचान दिलाने की दिशा में संघर्षरत हैं।

लोक-कलाओं और कलाकारों का प्रोत्साहन जरूरी : प्राचार्य
इस अवसर पर विद्यालय के प्राचार्य डॉ. ए एस गंगवार ने आमंत्रित कलाकार विजय चित्रकार को स्मृति-चिह्न भेंटकर एवं शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया। उन्होंने कहा कि विद्यालय में इस तरह के आयोजनों के जरिए एक तरफ जहां छात्र-छात्राओं में कलात्मक गुणों का विकास कर उन्हें देश की गौरवपूर्ण परंपरा व कला-संस्कृति से अवगत कराया जाता है, वहीं दूसरी लोक-कलाओं और संबंधित कलाकारों को प्रोत्साहित भी किया जाता है। वास्तव में यह प्रोत्साहन जरूरी है। इस दिशा में सभी को आगे आना चाहिए। तभी हमारी पुरानी लोक-कलाएं संरक्षित, सुरक्षित और संवर्द्धित हो सकेंगी। विद्यार्थियों को प्रेरित करते हुए प्राचार्य ने कहा कि कला शब्दों की सीमाओं से परे अपनी भावनाओं को व्यक्त करने की भाषा है। बच्चे अच्छा सीखें तथा रचनात्मक और अच्छा कलाकार भी बनें।


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