Bokaro: बोकारो ज़िले में भाजपा (BJP) को विधानसभा चुनाव में तीनों सीटों – बोकारो, चंदनक्यारी और बेरमो – पर करारी हार का सामना करना पड़ा है। इस हार के बाद पार्टी के भीतर जबरदस्त खींचतान शुरू हो गई है। कार्यकर्ता और नेता एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं, और सोशल मीडिया पर भी भाजपा समर्थकों की तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि भाजपा को विपक्षी पार्टियों ने नहीं, बल्कि खुद उसके अंदरूनी मतभेदों ने हराया है।
सोशल मीडिया पर नाराजगी
भाजपा कार्यकर्ता सोशल मीडिया पर अपनी नाराजगी खुलकर व्यक्त कर रहे हैं। कुछ पोस्ट के जरिए विरोध जता रहे हैं, तो कुछ कमेंट्स के माध्यम से उन पोस्ट्स का समर्थन कर रहे हैं। हालांकि, चंदनक्यारी के विधायक अमर बाउरी और बोकारो के पूर्व विधायक बिरंची नारायण ने जनता के फैसले को सर्वोपरि बताया, लेकिन पार्टी के अंदरूनी कलह को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
पीएन सिंह को टिकट न देने से भड़के समर्थक
लोकसभा चुनाव में पूर्व सांसद पीएन सिंह को टिकट न दिए जाने के बाद से उनके समर्थकों में असंतोष गहराता गया। विधानसभा चुनाव के दौरान यह असंतोष खुलकर सामने आया। विशेष रूप से बोकारो विधानसभा क्षेत्र में, भाजपा के कई समर्थकों ने आरोप लगाया कि लोकसभा चुनाव के बाद पीएन सिंह के समर्थकों को दरकिनार कर दिया गया था। इससे पार्टी के भीतर आंतरिक गुटबाजी और बढ़ी, जो चुनावी हार की एक प्रमुख वजह बनी।
“हार में भी हिम्मत नहीं हारे हैं,” बोले अमर बाउरी
पूर्व चंदनक्यारी विधायक अमर बाउरी ने सोशल मीडिया पर अपने जज़्बात साझा करते हुए लिखा –“क्या हार में, क्या जीत में, किंचित नहीं भयभीत मैं। कर्तव्य पथ पर जो भी मिला, ये भी सही, वो भी सही। वरदान नहीं मांगूंगा, हो कुछ पर हार नहीं मानूंगा। मजबूती से वापस आऊंगा। आपका बेटा-आपका भाई आपके बीच मौजूद रहेगा।”
पूर्व बोकारो विधायक बिरंची नारायण बोले-
राज्य नेतृत्व पर उठे सवाल
कई कार्यकर्ताओं का मानना है कि टिकट चयन से लेकर चुनाव प्रचार तक, राज्य के शीर्ष नेतृत्व को गुमराह किया गया। कार्यकर्ताओं का कहना है कि पार्टी पहले ही जमीनी स्तर पर अपनी पकड़ खो चुकी थी, लेकिन उनकी आवाज़ को अनसुना कर दिया गया। इस कारण पार्टी के परंपरागत वोट बैंक पर असर पड़ा, और भाजपा के भीतर ही असंतोष पनपने लगा।
बड़े नेताओं की उपेक्षा से बढ़ा कार्यकर्ताओं का असंतोष
पार्टी के बड़े नेता चुनावी सभाओं में पहुंचे, लेकिन केवल औपचारिक बातें कहकर लौट गए। इन सभाओं में जुटी भीड़ का उद्देश्य नेताओं या उनके हेलिकॉप्टर को देखने तक ही सीमित रहा।
बयानबाजी से फैली गलतफहमियां
नाराज कार्यकर्ताओं ने बड़े नेताओं के बयानों को तोड़-मरोड़कर जनता के बीच अलग संदेश पहुंचाया। उदाहरण के तौर पर, चंदनक्यारी में प्रधानमंत्री की सभा को केवल ओबीसी समुदाय पर केंद्रित बताया गया। इससे महता समुदाय में असंतोष पैदा हुआ, जिसका असर चुनावी नतीजों में देखने को मिला।
स्थानीय नेताओं की छवि पर असर
इसी तरह, बोकारो में शिवराज सिंह चौहान के बयानों को बिरंची नारायण का करीबी बताकर हल्का कर दिया गया। इससे स्थानीय नेताओं की साख प्रभावित हुई और कार्यकर्ताओं में नाराजगी और गहरा गई।
नए सिरे से संगठन को सशक्त करने की मांग
भाजपा समर्थकों का कहना है कि अगर पार्टी को वापसी करनी है, तो उसे संगठन को नए सिरे से खड़ा करना होगा। कई कार्यकर्ताओं ने जिले के शीर्ष पदाधिकारियों से नैतिक आधार पर इस्तीफा देने की मांग की है।
भाजपा को आत्मचिंतन की जरूरत
बोकारो ज़िले में भाजपा के इस प्रदर्शन ने संगठन के ढांचे और नेतृत्व शैली पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। पार्टी को आत्ममंथन कर भविष्य की रणनीति तैयार करनी होगी ताकि लोकसभा चुनाव में हार की पुनरावृत्ति न हो।
#Bokaro #BJP #ChandanKiyari #Bermo #JharkhandElections
स्वाभाविक है
जो लोग आज दूसरे को गद्दार कह रहें है,तो उनको तो अपनी भूमिका सार्थक रूप से निभाने की जरूरत थी । गोतियारी में अगर गोतिया को ना पूछा जाए तो वो तुरंत आपका विरोध करने लगता है,पार्टी के सभी सदस्यों को साथ लेकर चलने में क्या दिक्कत थी ।माननीय सांसद ढुल्लू जी आए नहीं और उनके डर से निवर्तमान को बुलाए नहीं। छोटे से छोटे कार्यकर्ता के खिलाफ खुलकर आना किसी जनप्रतिनिधि का घातक हो ही जाएगा ।