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Bokaro: श्राप की वजह से राजा संग बाराती और उनके हाथी बने पत्थर, हर साल आज के दिन लगता है ‘हथिया पत्थर’ मेला


Bokaro: हर साल के भांति इस साल भी 14 जनवरी को फुसरो स्थित दामोदर नदी के हथिया पत्थर पर भव्य मेले का आयोजन हुआ। जिसमें स्थानीय सहित दूरदराज के ग्रामीणों की काफी संख्या में भीड़ उमड़ी।

चढ़ाई जाती है बलि
बताते चलें कि आस्था का प्रतीक हथिया पत्थर मेला यहां प्रत्येक वर्ष लगता है। यहां मेले में आये श्रद्धालु स्नान कर स्थानीय देवी मंदिर में पूजा-अर्चना भी करते है, ताकि उनकी मनोकामना पूरी हों। साथ ही हथिया पत्थर में भी लोग प्रसाद लेकर तथा धूप-अगरबत्ती दिखाकर पूजा कर मनोकामना पूरी होने की मन्नतें मांगते हैं।

कहा जाता है कि सच्चे दिल से मांगी गयी मन्नत यहां जरूर पूरी होती है। इस मौके पर हथिया पत्थर को रंगीन कपड़े से ढंककर उसकी पूजा भी की गई। साथ ही मन्नत अनुसार किसी ने मुर्गे की बलि चढ़ाई तो किसी ने पाठा की।

हथिया पत्थर से जुड़ी कहानी
यहां बीच नदी में पत्थर की आकृति के बने प्राकृतिक हाथी और मंदिरों में पूजा अर्चना करते हैं। पत्थर की आक्रिति वाले हाथी के पीछे अत्यंत पौराणिक कहानी बताई जाती है।

कहानी के अनुसार प्राचीन काल में एक राजा ने अपने पुत्र के विवाह में इस दामोदर नदी को पार करने के लिए नदी से विनती की, कहा कि पानी कम हो जाए और बारात अराम से नदी पार कर जाएगी, तो वो बलि चढ़ाकर पूजा-अर्चना करेंगे। राजा की विनती पर दामोदर नदी का पानी कम हो गया। राजा और उनके बाराती नदी पार कर गए। लेकिन वापसी में भी राजा ने पूजा-अर्चना नहीं की। जिसके बाद नदी के श्राप से उसी समय राजा, बाराती सहित हाथी, घोड़े सभी पत्थर में तब्दील हो गए। आज भी गौर से देखने से उक्त सभी आकृतियां स्पष्ट नजर आती हैं।

 


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