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बोली जाने वाली हर भाषा को उचित सम्मान मिले, सरकार अपने निर्णय पर पुनः विचार करे


Bokaro: विगत दिनों झारखंड सरकार द्वारा लिए गए भाषा सम्बन्धि निर्णय मे दूरदृष्टि के समावेश से झारखंड का समुचित विकास सर्वाधिक, सर्वमान्य व लोकप्रियता के शिखर को छू सकेगा, यदि बहुलता से बोली जाने वाली मगही, अंगिका ,मैथिली,और भोजपुरी भाषा को भी शामिल कर लिया जाता है। अन्यथा सरकार के द्वारा राज्य केबिनेट में प्रस्ताव लाकर स्थानीय भाषा से हिंदी और संस्कृत को प्राथमिकता को कमतर किया जाना, इस भाषा को बोलने वालों के प्रति अन्याय प्रतीत होता है।

झारखंड प्रदेश में बहुलता के साथ मगही,अंगिका ,मैथिली,और भोजपुरी भाषा बोली जाती है। इन भाषा भाषियों को सरकार के इस निर्णय से घोर निराशा हुई है। महाराणा प्रताप विचार मंच झारखंड प्रदेश के सभी दल के प्रमुख नेताओं को इस संबंध में पत्र लिखने का काम करेगा और इन सभी भाषाओं को स्थानीय भाषा के रूप में स्थान दिए जाने की मांग करेगा, जिससे इस प्रदेश की आबादी के एक तिहाई आबादी के द्वारा बोली जाने वाली भाषा को उचित सम्मान मिल सके और झारखंड के व झारखंड वासियों के सर्वान्गिण विकास की अवधारणा, व्यावहारिक रूप ले सके।

सविंधान की आठवीं अनुसूची में शामिल मैथिली जैसे भाषा को भी स्थान नहीं दिया जाना, गैर संवैधानिक जान पड़ता है। यही नहीं बल्कि वोट बैंक को साधने का प्रयास प्रतीत होता है। वही केवल प्रदेश में दो से तीन प्रतिशत ही बोली और लिखी जाने वाली उर्दू को सरकार ने अपने निर्णय से सम्मानित करने का काम किया हैं। सरकार के भाषा संबंधी निर्णय से प्रदेश की बहुसंख्यक आबादी में घोर निराशा हाथ लगी है। कालांतर में सभी भाषाओं में इन सभी भाषाओं के शब्दों का समायोजन हुआ है, सभी भाषा समृद्ध हुई है।

महाराणा प्रताप विचार मंच के अध्यक्ष मृगेंद्र प्रताप सिंह ने प्रदेश के सभी दल के प्रमुख नेताओं को इस संबंध में पत्र लिखकर सहयोग मांगने का निर्णय लिया है। मृगेंद्र प्रताप सिंह का कहना है की बिहार के निकटवर्ती झारखंड के क्षेत्र पलामू ,गढ़वा,डाल्टनगंज,देवघर तथा झारखंड के शहरी क्षेत्रों रांची ,बोकारो ,धनबाद,जमशेपुर,रामगढ़ जैसे जगहों पर बहुलता से उपयोग की जाने वाली भाषा का तिरस्कार नहीं किया जाना चाहिए। मंच , कैबिनेट के निर्णय पर पेयजल आपूर्ति मंत्री के इस संबंध में किए गए अभिव्यति के लिए आभारी है, जिसमें उन्होंने सरकार को जनभावना से अवगत कराने का काम किया है। जिससे सरकार अपने निर्णय पर पुनः विचार करे भोजपुरी, अंगिका, मैथिली, मगही जैसे महत्वपूर्ण भाषाओं को सम्मान मिल सके और झारखंड सरकार के प्रदेश व प्रदेश वासियों के प्रगति को हकीकत में एक नया आयाम मिल सके ।


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