Bokaro: जिले में भगवान गणेश पूजनोत्सव खूब धूमधाम से मनाया जा रहा है। विभिन्न पूजा समितियों की ओर से खूबसूरत डिज़ाइन में पूजा पंडाल का निर्माण कराया गया है जो आकर्षण का केंद्र है। वैसे तो सभी जगह का पूजा पंडाल बहुत खूबसूरत है, पर बोकारो इस्पात नगर के सेक्टर चार सिटी सेंटर हर्षवर्द्धन प्लाजा के पूजा पंडाल की चर्चा शहर में सबसे ज्यादा हो रही है।
यहां पूजा पंडाल को आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिला स्थित तिरुपति बालाजी मंदिर का स्वरूप दिया गया है। पूजा पंडाल की ऊंचाई 80 फीट एवं चौड़ाई 90 फीट है। 25 कारीगर लगभग डेढ़ माह से पूजा पंडाल के निर्माण में लगे थे। राज्य में सबसे ऊँची गणेश भगवान की मूर्ति इसी पंडाल में लगाई है जो बेहद खूबसूरत है। यह मूर्ति 27 फीट ऊंची है।
आयोजनकर्ता गणेश मंडली ने बताया कि बेंगलुरु व मुंबई के मूर्तिकार ने भगवान गणेश व अन्य देवी देवताओं की प्रतिमा को बनाया है। पूजा पंडाल के बाहर लगभग 150 देवी – देवताओं की प्लास्टर आफ पेरिस से बनी प्रतिमा लगाई गई है। पंडाल का लाइंट शो होगा लोगों के आकर्षण का केंद्र है।
पंडाल में लगा बिजली से स्वचालित साइकिल चलाता मानव कंकाल, मछली पकड़ता बगुला आदि लोगो को खूब पसंद आ रहा है। पूरे पंडाल को बिजली के रंगीन बल्ब से सजाया जाएगा। इसके अलावा सेक्टर 4 के मजदुर मैदान का भी गणेश पूजा पंडाल में भक्तगणों की काफी भीड़ है। भगवान गणेश की मूर्ति भी काफी सुन्दर है जिसे श्रद्धालु काफी पसंद कर रहे है।
आज गणेश चतुर्थी का त्योहार है। हिंदू पंचांग के मुताबिक, भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी का पर्व मनाया जाता है। माना जाता है कि इसी दिन भगवान गणेश का जन्म हुआ था। यूं तो हर महीने में गणेश चतुर्थी आती है लेकिन भाद्रपद माह में आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को काफी खास माना जाता है।
मां की आज्ञा मानने के लिए दंड सहे
इंसान को भगवान गणेश की तरह माता-पिता का भक्त होना होगा। माता-पिता की सेवा ही सबसे बड़ी पूंजी हैं। माता-पिता के प्रति इंसान अपने कर्तव्य को पूरा कर संसार का हर सुख हासिल कर सकता है। ऐसी मान्यता है कि माता पार्वती स्नान करने गयीं, उस वक्त उनका कोई भी रक्षक नहीं था. ऐसे में उन्होंने चंदन के लेप से गणेशजी को तैयार किया. अपने पुत्र को आदेश दिया कि उनकी अनुमति के बिना किसी को घर में प्रवेश न दें. इस बीच पिता भगवान शिव वापस लौटे, पर माता कि आज्ञा का पालन करते हुए भगवान गणेश ने उन्हें प्रवेश की अनुमति नहीं दी. इस पर पिता क्रोधित हुए और नंदी को गणेश से युद्ध करने को कहा, पर गणेश ने नंदी को हरा दिया. इससे क्रोधित होकर भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया.