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Bokaro: यहां है मां श्यामा काली की चैतन्य प्रतिमा, भक्त स्वतः हो जाते है नतमस्तक, मैथिलों का तीर्थ-स्थल


Bokaro: झारखंड प्रदेश का लघु भारत कही जाने वाली इस्पातनगरी बोकारो में मैथिलों की संख्या भी बहुतायत में है। हजारों-हजार की संख्या में यहां मैथिल दशकों से बसे हैं। 60 घरिया मैथिल समाज तो सदियों पहले से यहां की धरती पर रचे-बसे हैं। इन प्रवासी मैथिलों के लिये बोकारो इस्पात नगर के सेक्टर-2डी स्थित मिथिला चौक पर अवस्थित मां श्यामा काली का भव्य मंदिर एक तीर्थ-स्थल है।

बोकारो ही नहीं, झारखंड के लिये मिथिला के इस धरोहररूपी मंदिर में सालोभर चहल-पहल लगी रहती है। विशेेषकर, दुर्गापूजा और काली पूजा पर तो यहां की रौनक देखते ही बनती है। मंदिर की संचालक संस्था मैथिली कला मंच कालीपूजा ट्रस्ट की ओर से हरसाल होनेवाली कालीपूजा पर यहां लगने वाला मैथिलों का विशाल समागम अपने-आप में खास होता है।

ट्रस्ट के महामंत्री सुनील मोहन ठाकुर ने बताया कि इस मंदिर में न केवल मैथिल, बल्कि अन्य क्षेत्रों के भक्त भी हजारों-हजार की तादाद में पहुंचकर पूर्ण चैतन्य मां श्यामा काली के चरणों में नतमस्तक होते हैं। मंदिर में मां श्यामा काली की चैतन्य प्रतिमा जहां भक्तों को स्वतः नतमस्तक होने पर विवश करती हैं, वहीं मंदिर की सुंदर साज-सज्जा व बेजोड़ शिल्पकला लोगों को मंत्रमुग्ध कर देती है।

भगवती मंदिर में प्रवेश-सीढ़ी के दोनों ओर मिथिलांचल की पहचान- माछ (मछली), पान, मखान में से मछली की विशाल अनुकृति लगी है, जो लोगों को खूब रिझाती है। इसी परिसर में भगवान शिव, मां पार्वती और संकटमोचन हनुमान के भी सुंदर मंदिर स्थापित हैं। दोनों मंदिरों के बीच भव्य यज्ञ-मंडप है, जहां हवन-कीर्तन के कार्यक्रम होते रहते हैं।

शिवरात्रि, श्रावण मास, दुर्गापूजा, कालीपूजा, अनंत चतुर्दशी, देवोत्थान एकादशी, लखराम पूजा सहित जैसे अवसरों पर इस मंदिर में भक्तों का वृहत समागम तो लगता ही है, इसके साथ ही सालोंभर कुछ न कुछ अनुष्ठान होते रहते हैं। प्रत्येक अमावस्या को मैया का भव्य पूजन भी सबसे अलग होता है। यहां का काली पूजनोत्सव वार्षिक महोत्सव के रूप में संपन्न होता है, जिसमें वेद-तांत्रोक्त विधि से मैया की पूजा होती है और इस अवसर पर होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम अपने-आप में अनूठे होते हैं।

वर्ष 1984 में प्रारंभ हुए काली पूजनोत्सव की शुरुआत स्व. पं. अमरेन्द्र मिश्र के नेतृत्व में की गयी थी। मंदिर के संस्थापक सदस्यों में सर्वश्री लक्ष्मी नारायण झा, बुद्धिनाथ झा, जगदीश झा स्व. रामचन्द्र चौधरी, अशोक प्रतिहस्त, स्व0रत्नेश्वर झा, जयराम झा, श्रीकृष्ण चन्द्र झा, शशिनाथ मिश्र, गणेशचंद्र झा, राधेश्याम झा, योगानन्द झा आदि थे। इनमें से दिवंगत सदस्यों को छोड़ शेष सभी लोग आज भी हर साल पूजा के सफल आयोजन में तन-मन-धन से जुटते हैं।

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