Bokaro Steel Plant (SAIL) Hindi News

इन ‘सुपर-फ़रिश्तो’ के कमी के चलते झारखण्ड के बड़े अस्पतालों में शुमार BGH का है हाल बेहाल


Bokaro: इस राज्य के सबसे बड़े अस्पतालों में से एक बोकारो जनरल अस्पताल (BGH) सुपर-स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की कमी के कारण अपना गौरव और भरोसा खोता जा रहा है। स्तिथि यह है कि बीजीएच में ऑन-रोल 128 डॉक्टरों में केवल तीन ही सुपर-स्पेशलिस्ट हैं। हालांकि बीजीएच में करीब 25 विभाग है, पर उनमें से सुपर स्पेशलिस्ट की जरुरत सिर्फ 16 विभागों में ही है। दुर्भाग्यवश उन 16 विभागों में सिर्फ तीन में ही सुपर स्पेशलिस्ट है। (बीजीएच में विभागवार सुपर -स्पेशलिस्ट की कमी नीचे दिए गए आंकड़ों में देखें)

बाक़ी 13 विभागों को सामान्य चिकित्सक और सामान्य सर्जन ही चला रहे है। बीजीएच से मरीजों को धड़ले से प्राइवेट अस्पतालों में रेफर किये जाने का एक सबसे बड़ा कारण सुपर स्पेशलिस्ट की कमी का होना भी है। स्तिथि की गंभीरता इससे समझी जा सकती है कि बीजीएच के इंटेंसिव केयर यूनिट (आईसीयू) और क्रिटिकल केयर यूनिट (सीसीयू) में भी मरीजों को बचाने के लिए कोई स्पेशलाइज्ड इंटेंसिविस्ट नहीं है।बता दें BGH का संचालन स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (SAIL) के बोकारो स्टील प्लांट (BSL) द्वारा किया जाता है। प्रबंधन को इस क्राइसिस के बारे में पता होते हुए भी कोई विशेष पहल नहीं की जा रही है। पूछने पर संचार प्रमुख, बीएसएल, मणिकांत धान ने कहा, “बीजीएच में मरीजों को बेहतर सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए प्रबंधन कटिबद्ध है. स्पेशलिस्ट और सुपर स्पेशलिस्ट के लिए पूर्व में भी वेकेंसी निकाली गई थी और आगे भी प्रयास जारी रहेगा. अस्पताल की सुविधाओं में संवर्धन के प्रयास के सकारात्मक परिणाम मिलने की उम्मीद है.”

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हालांकि हाल ही में बीजीएच द्वारा 14 डॉक्टरों की भर्ती की गई है, लेकिन उनमें से कोई भी सुपर स्पेशलिस्ट नहीं है। वे सामान्य चिकित्सक हैं। बीजीएच की दुर्दशा का एक मुख्य कारण सुपर-स्पेशलिस्ट की भारी कमी है। बीजीएच में जिन विभागों में सुपर-स्पेशलिस्ट हैं, वे न्यूरोसर्जरी, बर्न एंड प्लास्टिक और नेफ्रोलॉजी है। बताया जा रहा है कि इनमें से एक सुपर स्पेशलिस्ट बीजीएच से जाने के मूड में है।

कौन होते है यह सुपर-स्पेशलिस्ट ?
सुपर-स्पेशलिस्ट किसी अंग विशेष की अतिरिक्त जानकारी लेकर उस अंग या बीमारी के विशेषज्ञ बनते हैं ताकि लोगों का ज्यादा अच्छे तरीके से उपचार कर पाएं। अर्थात MBBS के बाद MD या MS करते है। कुछ डॉक्टर इसके बाद DM या MCh करके सुपर-स्पेशलिस्ट बनते हैं। करीब 14-15 साल की कड़ी मेहनत और पढ़ाई के बाद डॉक्टर सुपर-स्पेशलिस्ट बन कर तैयार होते है।

बीजीएच की यह स्तिथि एक दशक पहले ऐसी नहीं थी। सूत्रों के अनुसार कई सुपर-स्पेशलिस्ट और प्रसिद्ध डॉक्टर पिछले कुछ वर्षों में बीजीएच छोड़ चुके हैं या सेवानिवृत्त हो चुके हैं। जिसके बाद यह स्तिथि उत्पन्न हुई है। अनुभवी डॉक्टरों के जाने और सुपर-स्पेशलिस्ट की अनुपलब्धता ने बीजीएच की हालत ख़राब कर रखी है।

इतने ख्याति प्राप्त बीजीएच में कार्डियोलॉजी विभाग में DM कार्डियोलॉजिस्ट और कार्डियो थोरासिक सर्जन नहीं है। यहां तक की गैस्ट्रोलॉजी, यूरोलॉजी विभाग की भी हालत यही है। बीजीएच में विभागवार सुपर -स्पेशलिस्ट की कमी नीचे दिए गए आंकड़ों में देखें:सुपर स्पेशलिस्ट के भारी कमी के कारण निजी मरीजों के साथ-साथ बीएसएल के कर्मचारियों और उनके आश्रितों को प्राइवेट अस्पतालों में धड़ले से रेफर किया जा रहा है। क्युकी इसके अलावा बीजीएच के पास कोई चारा भी नहीं है। इन हालात को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि बीजीएच के कुछ विभाग, मरीज और कारपोरेट अस्पताल के बीच का मध्यस्तता केंद्र बन कर रह गए है।


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