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गीता ज्ञान सर्वोत्तम: मनुष्य स्वयं परमात्मा का अंश है


Bokaro: चिन्मय मिशन बोकारो की आवासीय आचार्या स्वामिनी संयुक्तानंद सरस्वती ने पाँच दिवसीय ज्ञान यज्ञ के पांचवें दिन गीता के 15 वे अध्याय पुरुषोत्तम योग के श्लोको का विश्लेषण करते हुए कहा कि मनुष्य स्वयं परमात्मा का अंश है, सत्य स्वरूप है, सुख है। परंतु जीव भाव के कारण वह जीव हो जाता है देव भाव के में बंधकर मन आदी छः इंद्रियो के द्वारा विषयों को भोगता है।

अपना संसार निर्माण करता है और उसी में आसक्त होकर विषय वासना में रम जाता है। इंद्रिय जनित वासनाएं उसके अंतहकरण एवं सूक्ष्म शरीर में धनिभूत होती जाती है और अंत में उन्ही वासनाओं के साथ अपने अंतःकरण को लेकर इस शरीर को त्यागता है। नया जन्म, नया शरीर ,नई योनि को प्राप्त करता है।

यह जन्म मृत्यु का चक्र चलता रहता है। जब तक वह अविद्या के कारण इस देह भाव में बंद बंधा रहता है और कर्म के फलों को भोगता रहता है जब तक देव भाव में बंधा रहता है ,उसे अपने सुख स्वरूप का बोध नहीं होता है। वह संसार के सुख दुख को भोगता रहता है विषयों को भी भोगना उसका लक्ष्य हो जाता है।

जब तक मनुष्य सांसारिक बुद्धि, योग, में रहेगा वह दुख भोगेगा लेकिन जब उसका विवेक जागृत होता है मन, बुद्धि, विवेक से आध्यात्म मार्ग में रमता है तो लगातार बैराग्य और भक्ति के अभ्यास से उसकी वासनाएं क्षीण होती है और धीरे-धीरे उसे कठिन कठिन राह पर चलकर अपने आप को जान लेता है। अपने स्वरूप को पहचान लेता है। अपने चेतन स्वरूप को प्राप्त कर लेता है। वह नित्य शुद्ध बुद्ध मुक्त सच्चिदानंद स्वरूप को प्राप्त कर परम आनंद में परम जाता है। वह इस जन्म मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है लेकिन इसे समझता कौन है जिसका ज्ञान चक्षु खुला है उसकी बुद्धि जागृत होती है।

विवेक चेतन होकर नित अनित्य का विचार करता है । उसे इस संसार की माया, उसका बंधन बांध नहीं पाता। स्वामिनी जी ने सभी भक्तों से आग्रह किया कि आप अपने कर्म को करें बिना उसके फल की चिंता किए।

आज के मुख्य अतिथि रचना जोहरी, आदित्य जोहरी, अधिशासी निदेशक, ओ एन जी सी, विजय कुमार बेहरा, मुख्य महा प्रबंधक, बोकारो इस्पात संयंत्र, एवम गीतांजलि बेहरा गीता ज्ञान यज्ञ की मुख्य अतिथि थे।

भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि मै ही धरती को अपने तेज से धारण करता हु। मैं ही ग्रहनक्षत्रों, सौरमंडल प्रकृति के सभी तत्व में हूँ। अर्थात जो प्राणी सम्पूर्ण सृष्टि में मुझे देखता है, कण कण में मेरे वो तेज देखता है, सारी लीलाओं को मेरी ही लीला समझता है । अपने आपको उस परमात्मा के प्रति समर्पित करता है, वही ब्रह्ममार्गी साधक है।

इस प्रकार स्वामिनी जी ने अपने सरल वाणी में पूरे वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ आध्यात्मिक विश्लेषण किया जिसमें जीवभाव से मुक्ति साधना, साधना के प्रकार, साधक के लक्षणों के बारे में भी समझाया।

इस शुभ अवसर पर चिन्मय मिशन के सचिव हरिहर राउत, विद्यालय अध्यक्ष विश्वरूप मुखोपाध्याय, सचिव महेश त्रिपाठी, कोषाध्यक्ष आर एन मल्लिक, प्राचार्य सूरज शर्मा, नरेंद्र कुमार, भाष्कर , संजीव मिश्रा, ज्योति दुबे सहित सैकड़ों भक्तों ने इस पांच दिवसीय ज्ञान यज्ञ का लाभ उठाया।


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