Bokaro: रेलवे लाइन के दोहरीकरण को लेकर बोकारो स्टील प्लांट (BSL) के उत्तरी विस्थापित क्षेत्र के धनघरी गांव में कुछ दिन पहले जिला प्रशासन एवं रेल ने संयुक्त अभियान चला कई घरों को तोड़ दिया था। बीएसएल के विस्थापितों में इस घटना को लेकर उबाल है। वह तोड़े के मकानों का मलबा हटाने का विरोध कर रहे है। बीएसएल के 19 विस्थापित गांव के लोग इस तरह के कार्रवाई से दुखी है। उन्हें सबसे अधिक दर्द इस बात का है विस्थापित होते हुए भी उन्हें अतिक्रमणकारी कहा जा रहा है।
मंगलवार सवेरे सैकड़ो की संख्या में विस्थापित धनघरी गांव के उन मकानों के तोड़े गए मलबे के पास जमा हुए और घटना के विरोध में जनसभा किये। विस्थापित गावों में यह मामला धीरे-धीरे तूल पकड़ रहा है। उक्त सभा मे सभी ने एक स्वर मे कहा कि हम रैयत रेलवे के जमीन मे नही बसे है, बल्कि हमारे जमीन पर रेल है। इसलिए कोई तरीके से हम अतिक्रमणकारी नही है। अतिक्रमणकारी कह कर हमारे पूर्वजों के कब्र को गाली देने का प्रयास किया जा रहा है। जिसे वह लोग कतइ बर्दाश नही करेंगे।
विस्थापितों को इस बात से भी दुःख है घटना के वक़्त या बाद में बोकारो के विधायक बिरंची नारायण, सांसद पी एन सिंह, कांग्रेस प्रत्याशी श्वेता सिंह या कोई और नेता उनके बीच आकर सुहानुभूति के दो शब्द नहीं बोलें। जयराम महतो, तीर्थनाथ आकाश आदि वक्त ने जनसभा से संबोधित किये।
विस्थापितों ने कहा कि ग्रामवासी इस लडा़ई को तब तक लड़ेंगे, जब तक उन लोगो को भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 के तहत नया नोटिफिकेशन निकालते हुए, अधिनियम के तहत प्रदत्त अधिकार रैयतो को नहीं दे दिए जाते। धनघरी के रैयती घरो जिस तरह से सुबह-सुबह गांव मे पुलिस फोर्स लगाकर महिलाओ को जबरन घर से निकाल कर बुलडोजर लगा कर तोड़ दिया गया वह मानवता के खिलाफ है।
जिला प्रशासन द्वारा धनगरी गांव के दर्जनों घरों को बुलडोजर द्वारा तोड़े जाने की घटना की कड़ी निन्दा की गई। विस्थापितों ने कहा कि धनगरी गांव के लोग अपने पुश्तैनी घरों में रह रहे हैं। उक्त जमीनों को रेलवे की जमीन बताना कहीं से भी न्याय संगत नहीं है। धनगरी गांव जहां आज है, वह 1932 के सर्वे सेटलमेंट में दर्ज है। जहां तक बोकारो इस्पात संयंत्र का कहना कि यह बोकारो संयंत्र का वह अधिग्रहीत क्षेत्र है, वह बिल्कुल गलत है।
सभा में विस्थापितों के वक्ताओं ने कहा कि हमारे देश का संशोधित भूमि अधिग्रहण और पुनर्स्थापन कानून 2013 यह कहता है कि यदि देश के विकास के लिए किसी कारखाने या परियोजना के लिए रैयतों से जमीन अधिग्रहित की जाती है और अधिग्रहण के अगले पांच सालों तक यदि रैयतों की जमीन पर कारखाना नहीं बनता है और वह जमीन रैयत के दखल में है तो स्वत: वह जमीन रैयत का हो जाता है।
यदि रेलवे को विस्तारिकरण के लिए जमीन चाहिए, तो फिर से रैयतों से भूमि अधिग्रहण विधेयक 2013 के प्रक्रिया में जाना होगा। वैसे भी जब न्यायालय में मामला विचाराधीन है तो बोकारो प्रशासन को सब्र का परिचय देना चाहिए। इस घटना से पूरे बोकारो का विस्थापित समाज मर्माहत है। आज की इस घटना से सबक लेकर खाली जमीन वापसी की लड़ाई और तेज किया जायेगा।
इस बैठक मे धनघरी गांव के साथ कुंडौरी, शिबुटांड, पंचौरा, बेलडीह, वास्तेजी, बैधमारा,महुआर, चैताटांड, चिटाई, अगरडीह, महेशपुर, पिपराटांड, शिवनडीह, भर्रा, बालीडीह के लोग सहित विभिन्न जगहों ने अपनी उपस्थिति दर्ज किया।