Bokaro: बोकारो शहर के सेक्टर 12 से सटे सतनपुर पहाड़ी के ऊपर बनी ऊंची मीनार हर समय लोगो के लिए जिज्ञासा का केंद्र रही है। अक्सर लोग उसपर चर्चा कर जानने की कोशिश करते है की पहाड़ी पर बनी यह मीनार, जो अब खंडहर बन चुकी है, कब बनी, किसने बनवाया और क्यों बनाई गई। हमने भी जिज्ञासा वश जानने की कोशिश की और पाया की वह इमारत ‘सेमाफोर टावर (Semaphore Tower)’ है, जिसे लगभग 200 साल पहले ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा बनाया गया था। (Photos सबसे नीचे देखें)यह सेमाफोर टावर्स बड़ी दूरी तक संदेश प्रसारित करने का काम करते थे। हम यह भी कह सकते है कि यह अंग्रज़ो का टेलीग्राम कम्युनिकेशन सिस्टम था। यह सूचना भेजने या देने की एक विधि है जिसमें आँखों से दिखने वाली वस्तुओं का उपयोग किया जाता है। यह दृष्य चीज ऊँचाई पर लगी होती है (जैसे किसी टॉवर के ऊपर)। वस्तु किस स्थिति में है, इसी से सूचना का पता चलता था।
सतनपुर पहाड़ी की चोटी पर स्तिथ यह दो मंजिला सेमाफोर टावर का बड़ा ऐतिहासिक महत्व है। अंग्रेजों द्वारा निर्मित यह टावर एक वास्तुशिल्प धरोहर है और इसे ठीक से संरक्षित किया जाना चाहिए। एक शोधकर्ता अमिताभ गुप्ता ने “Optical Telegraph in India: The forgotten Saga” में लिखा है कि, यह सेमाफोर टावर्स पश्चिम बंगाल, झारखंड में उत्तर-पश्चिम और वाराणसी (उत्तर प्रदेश) के पास चुनार में है। जो ब्रिटिश युग को दर्शाते हैं।
ईंट से बने ये विशाल टावर एक और अजीबोगरीब विशेषता को अविश्वसनीय रूप से प्रदर्शित करते हैं। यह टावर्स कोलकत्ता में फोर्ट विलियम से चुनार तक एक सीधी रेखा में बनाए गए थे। कोलकत्ता से चुनार की दुरी लगभग 694 किलोमीटर है। यह सेमाफोर टावर्स हावड़ा, हुगली, बांकुरा, पुरुलिया (पश्चिम बंगाल), बोकारो, चंदनक्यारी, गोमिया (बोकारो), हजारीबाग, कटकंसराय, कान्हाचट्टी (चतरा), शेरघाटी, धनगैन पास से गया (बिहार) तक और अंत चुनार में बनाया गया था।
झारखंड और बिहार में टावरों का अच्छी तरह से दस्तावेजीकरण नहीं किया गया है। इन सब सेमाफोर टावर्स में से एक झारखंड के सबसे प्रमुख शहर बोकारो के सतनपुर पहाड़ी पर है। गुप्ता ने अपने शोध में उल्लेख किया है कि लगभग 45 टावर्स एक सीधी रेखा में बने थे, प्रत्येक टावर अगले से 9.5 से 13 मील के बीच की दूरी पर था। साफ़ दिनो में कोलकाता के फोर्ट विलियम से चुनार तक महज 50 मिनट में इन टावर्स के बदौलत संदेश पहुंच जाया करते थे।
अंग्रेज़ो ने पहाड़ियों के ऊपर दो मंजिला मीनार (सेमाफोर टावर्स) बनाई, जबकि समतल भूमि पर मीनारें चार मंजिला ऊँची थीं। प्रत्येक टावर के दोनों ओर खिड़कियों थी। जिसमे दो लोग, दूरबीन से लैस रहते थे। टेलिस्कोप का उपयोग करते हुए वह बगल के टॉवर से सिग्नल को पढ़कर उसे दूसरे टॉवर तक पहुंचा देतें थे। इन टावरों का निर्माण लगभग 1813 के आसपास किया गया था।दुर्भाग्यवश इतनी पुरानी धरोहर होने के बावजूद इसे बचाये रखने की आज तक कोई ठोस पहल नहीं की गई। सतनपुर पहाड़ी टूरिस्ट स्पॉट बनने की करीब हर अहर्ता पूरी करता है, पर आज तक न किसी कंपनी ने सीएसआर के माध्यम से न प्रसाशन ने और न ही विधायक और सांसद ने अपने मद से इसको विकसित करने की पहल की। एहि ऐतिहासिक महत्व की मीनार अगर किसी दूसरे राज्य में होती तो आज वह बेहतरीन टूरिस्ट स्पॉट होता और आसपास के स्थानीय लोगो के लिए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार का स्रोत होता।