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सालों पहले हाथों में टिफिन बॉक्स, बिस्तर और सपने लिए छोड़ा घर, आज ESL स्टील प्लांट (Vedanta) के हैं मालिक


Bokaro: ज़िले के चंदनक्यारी ब्लॉक अंतर्गत सियालजोरी स्तिथ ईएसएल स्टील लिमिटेड (ESL Steel Limited) का नाम आज झारखण्ड के अधिकतर लोग जानते है। लेकिन इस स्टील प्लांट के मालिक, वेदांता ग्रुप (Vedanta Group) के फाउंडर और चेयरमैन, अनिल अग्रवाल की निजी जिंदगी से बहुत कम लोग वाकिफ हैं। पटना के एक सामान्य परिवार में जन्मे 68 वर्षीय बिजनेसमैन अनिल अग्रवाल ने कड़ी मेहनत, लगन और ईमानदारी की बदौलत कुछ ही दशकों में पूरी दुनिया में अपना साम्राज्य खड़ा कर लिया।

बिजनेसमैन अनिल अग्रवाल की कहानी उन हज़ारो-लाखो युवाओं के लिए प्रेरणा का श्रोत है जिनके लिए बेरोजगारी एक बहुत बड़ी समस्या है। उनके संघर्ष के दिनों की कहानी को बताने वाले कई अखबार, मैगज़ीन और लोग है, पर इस बार खुद अनिल अग्रवाल ने अपनी जद्दोजहत भरी जिंदगी के कई किस्से twitter में साझा किये। जिसे लोग खासकर युवा बेहद पसंद कर रहे है और उनके पोस्ट को ढेरों लाइक्स मिल रहे है। कई लोग उसे अपने-अपनों को शेयर भी कर रहे है।

कभी कबाड़ में पुराने तार खरीदने का काम करने वाले अनिल अग्रवाल आज वेदांता ग्रुप के मालिक हैं। ये ग्रुप खनन, एल्युमीनियम, स्टील और पेट्रोलियम जैसे कई क्षेत्रों में काम करता है। इसका मार्केट कैपिटलाइजेशन 1.40 लाख करोड़ रुपये है।

अनिल अग्रवाल ने कुछ दिन पहले कई सारे ट्वीट कर अपने जीवन से जुड़े किस्से बताए। उन्होंने लिखा:

टिफिन बॉक्स, बिस्तर और सपने लेकर बिहार छोड़ा था
अपनी किस्मत आजमाने के लिए लाखों लोग मुंबई आते हैं। मैं उनमें से एक था। मुझे वह दिन याद है जब मैंने अपनी आंखों में केवल एक टिफिन बॉक्स, बिस्तर और सपने लेकर बिहार छोड़ा था। मैं विक्टोरिया टर्मिनस स्टेशन पर पहुंचा और पहली बार मैंने एक काली पीली टैक्सी, एक डबल डेकर बस और सपनों का शहर देखा – ये सब मैंने केवल फिल्मों में देखा था। मैं युवाओं को कड़ी मेहनत करने और सितारों के लिए शूटिंग करने के लिए प्रोत्साहित करता हूं। अगर आप मजबूर इरादे के साथ पहला कदम उठाएंगे, मंजिल मिलना तय है!

बोल पाते थे केवल Yes और No
उन्होंने लिखा, ‘जब मैं पहली बंबई आया, तो इंग्लिश के केवल दो शब्द Yes और No जानता था. मैं अपने सपनों को बड़ा बनाने में लगा रहा, सोचा कि सफर बहुत लंबा है, पर इसे तय करना है. बहुत मेहनत की, मुश्किलें सही, फिर भी उभरता चला गया.‘

खरीदा 400 वर्ग फुट का मकान
अनिल अग्रवाल ने लिखा, ‘शुरुआत के तीन साल में मैंने बंबई में किसी तरह 400 वर्ग फुट से कम का एक फ्लैट खरीद लिया. ये मेरा सफर शुरू करने के रास्ते में बहुत बड़ा अचीवमेंट था. मेरी शादी पटना में हो चुकी थी और मेरा बेटा भी पटना में पैदा हुआ.‘

घर-घर लगना चाहिए
उन्होंने लिखा, ‘इसके बाद मैंने अपनी पत्नी और बेटे को मुंबई बुला लिया, क्योंकि घर-घर लगना चाहिए, मकान नहीं. ये मेरी जिंदगी का सबसे खुशी का पल का था, जब मेरा परिवार मुंबई आ गया. छोटा सा घर था मगर मेरे लिए वो मेरा आशियाना था’

कंपनी को हासिल करने का सपना
मुझे जल्द ही पता चला कि एक केबल कंपनी दिवालिया होने की कगार पर है। मुझे कंपनी खरीदने का कोई अनुभव नहीं था, लेकिन मैं वैसे भी आगे बढ़ गया। शमशेर स्टर्लिंग केबल कंपनी दिवालिया हो गई थी और मैंने उस कंपनी को हासिल करने का सपना देखना शुरू कर दिया था। हर दिन, मैं रिसीवर के कार्यालय में जाता और एक दरवाजे से दूसरे दरवाजे पर अधिक जानकारी पाने के लिए दस्तक देता रहा।

रातों की नींद हराम हो गई
मुझे पता चला कि मुझे 16 लाख डाउन पेमेंट के रूप में देने होंगे जो मेरे पास नहीं थे। मैंने कई रातों की नींद हराम कर दी यह सोचकर कि मैं इतनी बड़ी रकम कैसे इकट्ठा करूंगा।

नए दरवाजे खुलते हैं
जब आप आगे बढ़ते हैं तो नए दरवाजे खुलते हैं और आप नए लोगों से मिलते हैं जो आपकी मदद के लिए आते हैं। मैंने पाया कि जब आप कोशिश करते हैं, वास्तव में अपने सपनों तक पहुंचने की कोशिश करते हैं, तो ब्रह्मांड रहस्यमय तरीके से काम करता है।

पेमेंट की व्यवस्था हो गई
मैं ऋण के माध्यम से 16 लाख के डाउन पेमेंट की व्यवस्था करने में कामयाब रहा – मेरे अपने स्रोतों से 6 लाख, रिश्तेदारों से 5 लाख, और मेटल ब्रोकर रसिक भाई से 5 लाख। मैंने मई 1976 में कंपनी को आधिकारिक रूप से खरीदने के लिए कागजात पर हस्ताक्षर किए थे।

आंखों में थे आंसू
मेरी आंखों में आंसू थे और मैं मुस्कुराना बंद नहीं कर सका। वह मेरे जीवन का सबसे खुशी का दिन था। लेकिन मुझे नहीं पता था कि यह आगे एक रोलरकोस्टर यात्रा का महत्वपूर्ण मोड़ था।

 


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