Bokaro: बेहतरीन शैक्षणिक माहौल और नामी स्कूल बोकारो की पहचान है। पर इन दिनों निजी स्कूलों की मनमानी के चलते अभिभावक काफी परेशान है।
नए सत्र में किताबों की कीमतों में बेहिसाब बढ़ोतरी, यूनिफॉर्म इत्यादि की खरीदारी को बाध्य करना, कई स्कूलों द्वारा दो माह की संयुक्त फीस वसूली, NCERT किताबें लागु नहीं करना आदि आरोप प्राइवेट स्कूलों पर लगाते हुए, कई अभिभावकों ने उपायुक्त, बोकारो जाधव विजया नारायण राव से शिकायत की है।
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DC Bokaro: जिला स्तरीय समिति गठित
अभिभावकों से मिली शिकायतों को गंभीरता से लेते हुए डीसी ने झारखंड शिक्षा न्यायाधिकरण (संशोधन) अधिनियम 2017 के तहत एक जिला स्तरीय समिति का गठन किया गया है। अभिभावकों के प्रतिनिधियों सहित प्रसाशनिक और शिक्षा विभाग के अधिकारियों और नामित सदस्यों को शामिल करते हुए, समिति निजी स्कूलों में छात्रों के अभिभावकों की शिकायतों की जांच करेगी। डीसी द्वारा उठाये गए इस कदम से अभिभावकों में उम्मीद बंधी हैं।
यह होंगे समिति के सदस्य
समिति के सदस्यों में जिला शिक्षा अधिकारी, जिला शिक्षा अधीक्षक (डीएसई), जिला परिवहन अधिकारी (डीटीओ), चार्टर्ड अकाउंटेंट, दो स्कूल प्रिंसिपल और दो अभिभावक शामिल हैं। समिति का कार्य शिकायत पत्र में उठाए गए मुद्दों की गहनता से जांच करना और एक जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करना है।
डीसी बोकारो ने अभिभावकों के दर्द को समझा
झारखंड अभिभावक संघ के जिला अध्यक्ष महेंद्र राय ने कहा- “डीसी बोकारो ने अभिभावकों के दर्द को समझा और राहत देने के लिए एक समिति का गठन किया है। बता दें, प्रावधान के बावजूद आज तक जिला स्तरीय समिति नहीं बनाई गई थी।” राय ने कहा कि कमेटी के गठन के बाद स्कूलों की मनमानी पर रोक लगेगी। दो माह की संयुक्त फीस वसूली, हर साल किताबों में बदलाव, नए प्रकाशनों पर रोक और फीस वृद्धि पर अंकुश लगेगा।
निजी स्कूलों के खिलाफ विस्थापितों ने राष्ट्रपति को लिखा पत्र
बोकारो विस्थापित रैयत संघ ने भारत के राष्ट्रपति को पत्र लिखकर बोकारो में चल रहे निजी स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबें लागू करने का अनुरोध किया था। पत्र में लिखा – “अधिकांश निजी स्कूल सीबीएसई से संबद्ध हैं लेकिन इन स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबें इस्तेमाल नहीं की जाती हैं। सीबीएसई की गाइडलाइन में सभी कक्षाओं में एनसीईआरटी की किताबें इस्तेमाल करने का सख्त प्रावधान है। आज शिक्षा को सबसे बड़ा व्यवसाय बना दिया गया है, पुरानी किताबें या तो फेंक दी जाती हैं या जला दी जाती हैं। यह अनुमान नहीं लगाया जा सकता कि एक किताब बनाने के लिए कितने पेड़ काटे जाते हैं, तो लाखों किताबों के पन्ने बनाने के लिए कितने पेड़ काटे जाते होंगे।”
प्राइवेट स्कूलों में मध्यम वर्गीय परिवारों के बच्चों का पढ़ना हुआ मुश्किल
अभिभावकों के अनुसार स्कूल री-एडमिशन या वार्षिक शुल्क या विकास शुल्क के नाम पर अभिभावकों से हर साल नए सत्र के शुरुआत में मोटी रकम वसूलता है। निजी प्रकाशकों की महंगी किताबों के साथ-साथ अन्य शुल्क के कारण इन स्कूलों में मध्यम वर्गीय परिवारों के बच्चों को पढ़ाना बहुत मुश्किल हो गया है। इतना ही नहीं, निजी स्कूल प्रबंधन छात्रों को अपनी इच्छानुसार निर्धारित दुकानों से किताबें खरीदने के लिए कहते हैं। ये किताबें किसी अन्य दुकान पर उपलब्ध नहीं होती है।