Bokaro: हमलोगो में कईयों ने बहुचर्चित फिल्म पैडमैन देखी होगी। यह फिल्म दक्षिण भारत के एक गरीब परिवार मे जन्मे अरुनाचलम मुरुगनांथम (पैडमैन) की कहानी से प्रेरित थी। असल ज़िन्दगी में अरुनाचलम मुरुगनांथम ने गरीब महिलाओ के लिए सस्ते सैनिटरी पैड का निर्माण करने वाली मशीन का ईजाद किया है। उनकी यह मशीनो ने न केवल भारत बल्कि दूसरे अन्य विकासशील देशों की ग्रामीण महिलाओं के स्वास्थ्य में एक क्रांति कारी परिवर्तन किया।
भारत के इसी पैडमैन की बनाई मशीन बोकारो में भी गरीब महिलाओ के लिए मददगार साबित हो रही है। बोकारो इस्पात संयंत्र (BSL) ने अरुनाचलम मुरुगनांथम (पैडमैन) से सेनेटरी पैड बनाने की मशीने खरीदी है। महिला समिति बोकारो द्वारा बीएसएल के सीएसआर के सहयोग से संचालित स्वावलंबन केंद्र में यह सेमि-ऑटोमेटिक सेनेटरी नैपकिन मशीन लगाई गई है। इसकी मदद से अब कम लागत में उच्च गुणवत्ता वाली सेनेटरी नैपकिन महिलाओं तक पहुंचाई जा रही है।
वर्ष 2015 में बीएसएल ने सीएसआर कार्यों के तहत महिला समिति बोकारो के साथ मिलकर स्वावलंबन केंद्र, सेक्टर 4 में महिलाओं के लिए सेनेटरी नैपकिन उत्पादन प्रोजेक्ट शुरू किया था। जिसका उद्देश्य कम लागत के सेनेटरी नैपकिन बनाकर बोकारो के परिक्षेत्रीय इलाकों में ग्रामीण महिलाओं को वितरित करना था। आरम्भ में यह प्रोजेक्ट मैनुअल तरीके से कार्ययान्वित किया जा रहा था और महिला समिति के माध्यम से इसमें कुछ महिलाएं कार्यरत थी। मैनुअल मशीन द्वारा उत्पादन होने के कारण सेनेटरी नैपकिन का कुल उत्पादन कम था तथा गुणवत्ता भी बाजार में उपलब्ध अन्य सेनेटरी नैपकिन के मुकाबले कुछ कम थी।
इस पृष्ठभूमि में बीएसएल के सीएसआर विभाग ने सेनेटरी नैपकिन के उत्पादन तथा गुणवता को बढ़ाने का निर्णय लिया। इस दिशा में नयी मशीन को खरीदने के निर्णय के दौरान यह भी ध्यान में रखा गया कि नयी मशीन को उत्पादन तथा गुणवत्ता में बेहतरी के साथ-साथ महिलाओं को रोजगार के अवसर भी उपलब्ध कराए। इस दौरान सेनेटरी नैपकिन के उत्पादन से सम्बंधित अन्वेषक “श्री अरुणाचलम मरगनंथम” की बनायी गयी मशीन पर अधिकारियो का ध्यान गया.
बोकारो इस्पात संयंत्र के प्रवक्ता, मणिकांत धान ने कहा की अरुणाचलम मरगनंथम के जीवन पर बनी फिल्म ” पैडमैन ” भी हमारे कार्यों के प्रेरणा का श्रोत थी। इसके बाद बीएसएल ने बीपीएससीएल के सहयोग से इस मशीन को मरगनंथम किकी कंपनी “जया श्री इंडस्ट्रीज” से ख़रीदा। जिसे महिला समिति के स्वावलंवन केंद्र में इसे स्थापित किया गया। यह प्रोजेक्ट पहले पुराने मशीन से चलाया जा रहा था। नयी मशीन के आ जाने से यहां पहले से कार्यरत महिलाओं के रोजगार में बिना कोई कमी हुए उत्पादन और गुणवता दोनों बेहतर हुई है। आस-पास के परिक्षेत्रीय गावों में स्वावलंवन केंद्र में बन रही पैडस को वितरीत करने की व्यवस्था की जा रही है।
डायरेक्टर इंचार्ज, बोकारो इस्पात संयंत्र , अमरेंदु प्रकाश का मानना है की आने वाले समय में महिलाओं के स्वास्थ्य के साथ-साथ उनके सशक्तीकरण में इस प्रोजेक्ट की अहम् भूमिका रहेगी, और बीएसएल का सीएसआर इसे कार्यान्वित कर अपने उदेश्यों की पूर्ति में सफल होगा।
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आइए भारत के पैडमैन, अरुणाचलम मरगनंथम की प्रेरणादायक जीवनी के बारे में जानतें है:
आज हमारा देश इतनी तेजी से तरक्की कर रहा है ऐसे में भारत के कई गांवों में महिलाएं आज भी पीरियड्स के दौरान पैड का इस्तेमाल नहीं करती हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह है की यह महंगा आता है। गावों के लोगों की आमदनी इतनी नहीं होती है की वो हर महीने अपनी आमदनी से महिलाओं के लिए पैड खरीद सके। ऐसे में भारत की महिलाओं की इस समस्या का समाधान अरुणाचलम मुरुगनंतम ने निकाला है। यही वो ब्यकित है जिन्होंने देश को पैड दिया जिसका इस्तेमाल आज हर महिला करती है। पैडमैन के नाम से विख्यात अरुनाचलम मुरुगनांथम का जन्म 1962 में भारत के कोयंबतूर में एक हथ-करघा बुनकरों के परिवार में हुआ था, इन्होने एक सस्ते सैनिटरी पैड की खोज-निर्माण करके दुनिया में नाम कमाया है। यह भारत ही नहीं बल्कि दूसरे अन्य विकासशील देशों की ग्रामीण महिलाओं के स्वास्थ्य में एक क्रांति कारी परिवर्तन किये, आइए भारत के पैडमैन की प्रेरणादायक जीवनी के बारे में जानतें है।
अरुणाचलम मुरुगनंतम की वर्ष 1998 में शादी हुई थी। इनकी पत्नी का नाम शांती है। अपनी पत्नी शांती का पीरिड्य के दौरान महंगे पैड ना खरीद पाने और पैड की जगह न्यूजपेपर का इस्तेमाल करने की बात जब अरुणाचलम को पता चली, तो उन्होंने सस्ते पैड बनाने का ठान लिया। मुरुगनंतम को सस्ते पैड की मशीन बनाने में करीब दो साल लगे। इस दौरान इनको कई बार निराशा भी हाथ लगी, मगर इन्होने कभी हार नहीं मानी और कम लागत में सैनिटरी नैपकिन बनाने वाली मशीन का आविष्कार कर ही डाला।
अरुणाचलम मुरुगनंतम ने अपने सस्ते पैड बनाए जाने वाली मशीन और तकनीक को साल 2006 में आईआईटी मद्रास के सामने रखा था। जिसके बाद इनके इस आविष्कार को नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन ग्रासरूट टेक्नोलॉजिकल इनोवेशन से अवार्ड भी मिला। यह पुरस्कार जितने के बाद अरुणाचलम मुरुगनंतम ने जयाश्री इंडस्ट्रीज की स्थापना की, इस इंडस्ट्री से बनी 1300 से ज्यादा मशीनें भारत के 27 राज्यों के अलावा अन्य सात देशों में स्थापित की गई हैं। वहीँ कॉर्पोरेट संस्थाओं ने उनके इस आविष्कार को खरीदने की कोशिश भी की थी, मगर इन्होने इंकार कर दिया। बताया जाता है की अरुणाचलम मुरुगनंतम ने आईआईटी बॉम्बे, आईआईएम बैंगलोर, आईआईएम अहमदाबाद और हावर्ड में इसपर भाषण भी दिया है।
मुरुगनंतम को भारत सरकार द्वारा पद्म श्री से सम्मानित किया गया है, इनको टाइम मैगज़ीन द्वारा विश्व के सबसे 100 प्रभावशाली लोगों की सूची में साल 2014 में शामिल किया गया था।