Bokaro Steel Plant (SAIL) Hindi News

विस्थापित पिये गन्दा पानी और सप्लाई पानी से खटाल में भैस धुलाये, यह सुन-अधिकारियों को नहीं सुझा जवाब


Bokaro: बोकारो स्टील प्लांट (BSL) की 4.5 किलोमीटर लंबी पानी की पाइपलाइन परियोजना विस्थापितों द्वारा पिछले 10 दिनों से कुण्डौरी में बाधित है। बताया जा रहा है कि नौकरी और मुआवजे की मांग को लेकर विस्थापितों ने काम बंद करवा दिया है। पर नौकरी और मुआवजे के अलावा कई और मुद्दों पर भी विस्थापित बीएसएल से खासे ख़फ़ा है। उनके द्वारा दी गई जमीन के एक बड़े हिस्से पर अतिक्रमण, सीएसआर का कोई काम नहीं होना, बिजली, पानी और सड़क के आभाव में उनके अविकसित गांव आदि ने विस्थपितों को प्रबंधन के खिलाफ खड़ा कर दिया है। विस्थापित काफी दुखी हैं।

हालांकि बीएसएल प्रबंधन आंदोलनकारियों को शांत कराने का प्रयास कर रहा है पर अभी तक असफल रहा है। विस्थापित अपनी मांग पर अड़े हुए हैं और नौकरी से कम कुछ भी मोलभाव करने को तैयार नहीं हैं। कई विस्थापित लोगों ने दावा किया कि उनकी जमीन के अधिग्रहण के बाद भी उन्हें आज तक मुआवजा नहीं मिला है। इस बीच विस्थापितों से बात करने गए अधिकारियों का एक वीडियो चर्चे में है। जिसमें विस्थापितों ने बड़ी ही सहजता के साथ अपना रोष व्यक्त किया है। Video :

सेल और बीएसएल के शीर्ष अधिकारियों के लिए भी यह वीडियो उपयोगी है। क्युकी अधिकतर जमीनी बातें उनतक शायद ही पहुंच पाती है। आने वाले समय में जिस तरह प्लांट के प्रोडक्शन को बढ़ाने की बात चल रही है। इस वीडियो को देखकर विस्थापितों के दर्द और आक्रोश का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। क्युकी बीएसएल के लिए कोई भी विकास का काम बिना विस्थापितों को कॉन्फिडेंस में लिए कर पाना मुश्किल है।

बीएसएल प्रबंधन को अब विस्थापितों से डील करने के लिए ठोस निर्णय लेने होंगे। क्युकी विस्थापितों के नजर में बीएसएल प्रबंधन एक के बाद एक प्रकरण जैसे मुआवजा, नौकरी और अब अतिक्रमण में विश्वास खो चूका है। उस विश्वास को वापस हासिल करने के लिए विस्थापित गांवो में जमीनी स्तर पर काम करना होगा, जैसे टाउनशिप में काम हो रहा है। विस्थापितों से सीधे जुड़ना होगा। समस्या को जड़ से खत्म करने के लिए अब बीएसएल प्रबंधन को पहल करनी होगी। Video: 

क्या है पाइपलाइन परियोजना-
पाइपलाइन लाइन परियोजना दो साल देरी से चल रही है। इसे 2020 तक पूरा किया जाना था। बीएसएल के एक अधिकारी ने बताया कि दामोदर नदी से बीएसएल प्लांट तक यह वैकल्पिक पाइपलाइन परियोजना है। वर्तमान में बीएसएल को तेनुघाट बांध से 34.5 किलोमीटर लंबी नहर के माध्यम से सीधे पानी की आपूर्ति हो रही है। दरअसल बीएसएल को अपने इस्पात उत्पादन और टाउनशिप में पेयजल आपूर्ति के लिए प्रति घंटे कम से कम 18,000 क्यूबिक मीटर पानी की आवश्यकता होती है।

बीएसएल अधिकारी ने कहा, 2016 में तेनुघाट नहर में दरार पड़ने की घटना के बाद पानी की आपूर्ति के वैकल्पिक स्रोत का विचार किया गया। उस घटना से उत्पादन बुरी तरह प्रभावित हुआ था। स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (SAIL) ने तब वैकल्पिक व्यवस्था करने का फैसला किया ताकि भविष्य में ऐसी घटना होने पर जल संकट न हो। सर्वेक्षण के बाद 68 करोड़ रुपये की पाइपलाइन स्थापना परियोजना शुरू हुई।

बीएसएल अधिकारी ने कहा, “हम इस मुद्दे को हल करने की कोशिश कर रहे हैं ताकि पाइपलाइन स्थापना का काम जल्द ही फिर से शुरू हो सके। वैकल्पिक पाइपलाइन व्यवस्था से भविष्य में पानी की आवश्यकता को पूरा करने में भी मदद मिलेगी क्योंकि बीएसएल अपने उत्पादन को बढ़ाने के लिए काम कर रहा है। उत्पादन क्षमता में वृद्धि के लिए अधिक पानी की आवश्यकता होती है। इस पाइपलाइन परियोजना के लिए बीएसएल को पर्यावरण मंजूरी भी मिल गई है”।

हालांकि अधिकांश विस्थापित गांव नौकरी और मुआवजे की मांग को लेकर पाइपलाइन परियोजना का विरोध कर रहे हैं, लेकिन मुख्य बिंदु जहां काम रोक दिया गया है वह कुण्डौरी है। इसमें शिबुटाड़, पचोरा और कनारी के विस्थापित भी शामिल हैं। विस्थापितों ने कहा है की, ”जब तक बीएसएल प्रबंधन विस्थापितों को रोजगार देने की प्रक्रिया शुरू नहीं करता, तब तक वे पाइपलाइन का काम शुरू नहीं होने देंगे”।


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